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भिंड

ऊंट और ट्रैक्टरों से यूपी ले जाई जा रही हरी लकड़ी की खेप

बीहड़ में लंबे समय से लकड़ी तस्कर सक्रिय हैं। वन विभाग के अधिकारियों की अनदेखी के चलते बड़े पैमाने पर वृक्ष काटे जा रहे हैं।

भिंडFeb 04, 2019 / 11:04 pm

Rajeev Goswami

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ऊंट और ट्रैक्टरों से यूपी ले जाई जा रही हरी लकड़ी की खेप

भिण्ड. चंबल के बीहड़ में लंबे समय से लकड़ी तस्कर सक्रिय हैं। वन विभाग के अधिकारियों की अनदेखी के चलते बड़े पैमाने पर वृक्ष काटे जा रहे हैं। हरी लकड़ी की खेप ऊंट और ट्रैक्टर ट्रॉलियों के जरिए उत्तर प्रदेश में खपाई जा रही है।
वन संरक्षण के नाम पर शासन स्तर पर प्रति वर्ष करोड़ों रुपए खर्च किया जाता है। लगातार हरे वृक्षों की कटाई से जहां पर्यावरण को नुकसान पहुंचने का अंदेशा बढ़ रहा है वहीं शासन को आर्थिक क्षति भी हो रही है। वन विभाग में करीब दो दर्जन अधिकारी, कर्मचारियों का स्टाफ होने के बावजूद नियमित रूप से बीहड़ी क्षेत्र में पेट्रोलिंग नहीं की जा रही। ऐसे में लकड़ी तस्कर निरंकुश होकर अपने मंसूबों में कामयाब हो रहे हैं।
चंबल के बीहड़ में खड़े हरे वृक्ष बड़े पैमाने पर काटे जा रहे हैं। लकड़ी तस्करों द्वारा पिछले करीब पांच साल से हरियाली पर लगातार प्रहार किया जा रहा है। जंगल में जगह-जगह कटे हुए वृक्षों के ठूंठ अवैध कटाई के प्रमाण हैं। लेकिन ये ठूंठ किसी भी वन विभाग के अधिकारी या कर्मचारी को नजर नहीं आ रहे हैं।
इन इलाकों में चल रही लकड़ी की कटाई: चंबल के किनारे बसे सरायपुरा, ज्ञानपुरा, सांकरी, बरही, गढ़ा, दुल्हागन, कछपुरा, कनेरा, अटेर, बजरिया सहित दो दर्जन गांवों के पास बीहड़ में दिन रात हरे वृक्ष काटे जा रहे हैं। लकड़ी तस्करी में स्थानीय ग्रामीणों का शामिल होना बताया जा रहा है। चिंतनीय विषय ये है कि वन विभाग का अमला महीने में एक बार भी निरीक्षण के लिए बीहड़ के भ्रमण पर नहीं निकल रहा है।
मोबाइल ऑफ और दफ्तर से नदारद

रहते हैं अधिकारी

विदित हो कि जिला वन मंडलाअधिकारी का मोबाइल अक्सर बंद रहता है। बताया गया है कि प्रशिक्षण पर आए आइएफएस अफसर नितिन गर्ग को भिण्ड जिले का प्रभार दे दिया गया है जो एक दिन भी क्षेत्र के भ्रमण पर नहीं गए हैं और ना ही उन्होंने वस्तुस्थिति जानने के लिए संबंधित अधिकारी व कर्मचारियों को ऐसे दिशा निर्देश दिए हैं। सूत्रों की मानें तो प्रभारी डीएफओ आइएएस की तैयारी कर रहे हैं। ऐसे में वह ’यादातर वक्त पढ़ाई में दे रहे हैं। जबकि अनुविभागीय वन अधिकारी एनएल अहिरवार की स्थिति ये है कि वे महीने में एक या दो बार ही दफ्तर पहुंचते हैं। नतीजतन निचला अमला भी अपने ही तरीके से ड््यूटी को अंजाम दे रहा है।

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