इस शो की परिकल्पना और कोरियाग्राफी शांति बर्धन ने की थी। इसके लिए उन्होंने वाल्मिकी रामायण से लेकर कई भाषाओं में लिखी गई रामायण का अध्ययन किया। इसके बाद अलग-अलग राज्यों के कॉस्ट्यूम को शामिल किया। दो साल की मेहनत के बाद पहले शो का प्रोडक्शन हो पाया। पहले शो के बाद ही उनकी मौत हो गई तो उनकी पत्नी गुल बर्धन ने शो की जिम्मेदारी संभाली कोरियोग्राफी प्रभात गांगुली करने लगे। गुलवर्धन राम का रोल करती थीं जबकि अन्य महिलाएं राक्षस का।
तीन रामायण, सात संस्कृति और संगीत का मिश्रण
नाटिका से जुड़े रामप्रकाश के अनुसार इस नाटिका में वाल्मिकी कृत रामायण, उड़ीसा/बंगाल की कृतिवास रामायण और तमिलनाडू की कंब रामायण से कुछ सीन्स लिए गए। सेट पर गुजरात और बंगाल डिजाइन का यूज है तो आंध्र प्रदेश की पट्ट शैली भी देखने को मिलती है। वहीं, राम की पोशाक व मास्क कथकली में यूज होने वाली ड्रेस है तो राम-सीता की पोशाक मणिपुर नृत्य शैली की और वानर सेना की पूर्वांचल की पारंपरिक पोशाक है। इसमें पंजाब का हीर संगीत, महाराष्ट्र का पोवाड़ा, मप्र का आल्हा और यूपी का लोकगीत सुनने को मिलता है। यह भक्ति से जुड़ी न होकर सांस्कृतिक पक्ष को पेश करती प्रतीत होती है।
पूरी नाटिका में सिर्फ एक संवाद
9 सीन की नाटिका की कहानी मेले से शुरू होती है, जहां दर्शक आकर खुद कठपुतली में बदल जाते हैं। इसमें सिर्फ एक संवाद राम और केवट के बीच ही सुनने को मिलता है।
कोर्स में किया गया शामिल
कठपुतली शैली का पहला शो होने के कारण इसे मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय की स्थापना के समय ही कोर्स में शामिल किया गया था। अब तक यहां इसके आठ शो हो चुके हैं। राजस्थान की पारंपरिक शैली में गुलबर्धन ने कलाकारों को कठपुतली बनाकर पहली नाट्य मंचन शुरू किया था। नृत्य नाटिका में 51 तरह के मुखौटे यूज किए गए है।
65 सालों में नहीं बदली कॉस्ट्यूम
इस शो में 65 साल पुराने कॉस्ट्यूम और मास्क इस्तेमाल किया गया है। समय के साथ सिर्फ इनकी रिपेयरिंग की जाती है। कागज के बने मास्क पर पहले नेचुरल कलर्स किए जाते थे। इन्हें खराब होने से बचाने के लिए अब एक्रेलिक कलर्स का यूज होता है।