पंडित शर्मा के अनुसार पौराणिक ग्रंथों के मतानुसार श्री कृष्ण का जन्म Shrikrishna janmashtami का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि के समय हुआ था। अत: भाद्रपद मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यदि रोहिणी नक्षत्र का भी संयोग हो तो वह और भी भाग्यशाली माना जाता है इसे जन्माष्टमी Shreekrishna janmashtami के रूप में भी मनाया जाता है।
कृष्ण जन्माष्टमी पूजा 2018 का शुभ मुहूर्त 2018 krishna janmashtami shubh muhurat…
जन्माष्टमी के दिन निशिता पूजा का समय – 23:57 से 24:43+ तक। जन्माष्टमी में मध्यरात्रि का क्षण – 24:20+ अष्टमी तिथि आरंभ – 20:47 (2 सितंबर)।
पारण के दिन रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने का समय = 20:05
वैष्णव कृष्ण जन्माष्टमी…
2018 वैष्णव कृष्ण जन्माष्टमी, 3 सितंबर 2018 वैष्णव जन्माष्टमी के लिये अगले दिन का पारण समय = 06:04 (सूर्योदय के बाद)
पारण के दिन अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाएंगे।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार शास्त्रों में विशेष महत्व बताया गया है। श्रीकृष्ण के ध्यान, पूजन और आराधना से मिलने वाले लाभों को इन मंत्रों से समझिए…
1. सकृन्मनः कृष्णापदारविन्दयोर्निवेशितं तद्गुणरागि यैरिह।
न ते यमं पाशभृतश्च तद्भटान् स्वप्नेऽपि पश्यन्ति हि चीर्णनिष्कृताः॥ यानि जो मनुष्य केवल एक बार श्रीकृष्ण के गुणों में प्रेम करने वाले अपने चित्त को श्रीकृष्ण के चरण कमलों में लगा देते हैं, वे पापों से छूट जाते हैं, फिर उन्हें पाश हाथ में लिए हुए यमदूतों के दर्शन स्वप्न में भी नहीं होते।
न विदुः सन्तमात्मानं वृष्णयः कृष्णचेतसः॥ यानि श्रीकृष्ण को अपना सर्वस्व समझने वाले भक्त श्रीकृष्ण में इतने तन्मय रहते थे कि सोते, बैठते, घूमते, फिरते, बातचीत करते, खेलते, स्नान करते और भोजन आदि करते समय उन्हें अपनी सुधि ही नहीं रहती थी।
क्षिणोत्यभद्रणि शमं तनोति च।
सत्वस्य शुद्धिं परमात्मभक्तिं
ज्ञानं च विज्ञानविरागयुक्तम्॥ यानि श्रीकृष्ण के चरण कमलों का स्मरण सदा बना रहे तो उससे पापों का नाश, कल्याण की प्राप्ति, अन्तः करण की शुद्धि, परमात्मा की भक्ति और वैराग्ययुक्त ज्ञान-विज्ञान की प्राप्ति आप ही हो जाती है।
जहुस्त्वन्ते तदात्मानः कीटः पेशस्कृतो यथा॥ यानि श्रीकृष्ण से द्वेष करने वाले समस्त नरपतिगण अंत में श्री भगवान केे स्मरण के प्रभाव से पूर्व संचित पापों को नष्ट कर वैसे ही भगवद्रूप हो जाते हैं, जैसे पेशस्कृत के ध्यान से कीड़ा तद्रूप हो जाता है, अतएव श्रीकृष्ण का स्मरण सदा करते रहना चाहिए।
सर्वान्हरित चित्तस्थो भगवान्पुरुषोत्तमः॥ यानि भगवान पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण जब चित्त में विराजते हैं, तब उनके प्रभाव से कलियुग के सारे पाप और द्रव्य, देश तथा आत्मा के दोष नष्ट हो जाते हैं।
6. वैरेण यं नृपतयः शिशुपालपौण्ड्र-
शाल्वादयो गतिविलासविलोकनाद्यैः।
ध्यायन्त आकृतधियः शयनासनादौ
तत्साम्यमापुरनुरक्तधियां पुनः किम्॥ यानि जब शिशुपाल, शाल्व और पौण्ड्रक आदि राजा बैरभाव से ही खाते, पीते, सोते, उठते, बैठते हर वक्त श्री हरि की चाल, उनकी चितवन आदि का चिन्तन करने के कारण मुक्त हो गए, तो फिर जिनका चित्त श्री कृष्ण में अनन्य भाव से लग रहा है, उन विरक्त भक्तों के मुक्त होने में तो संदेह ही क्या है?