– चंद्रप्रभाष शेखर, संगठन प्रभारी, कांग्रेस भाजपा : आदिवासी सीटों पर बदले जा सकते हैं चेहरे
भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती छह आदिवासी सीटें हैं। इनमें से चार पर पार्टी के पास मजबूत उम्मीदवारों का टोटा है। मोदी की लहर में हुए 2014 के चुनाव में भाजपा ये छह सीटें जीत गई थी, हालांकि बाद में उपचुनाव में एक सीट उसके हाथ से निकल गई। इस बार भाजपा इन सीटों पर उम्मीदवार बदलने के साथ ही बड़े नताओं की ड्यूटी लगाकर खुद का मजबूत करने की कोशिश में जुटी हुई है।
झाबुआ: भाजपा के दिलीप सिंह भूरिया ने 2014 में कांतिलाल भूरिया को हराकर यह सीट जीती, लेकिन दिलीप के निधन के बाद 2015 में हुए उपचुनाव मेंं कांतिलाल ने दिलीप की पुत्री निर्मला भूरिया को हराकर सीट कब्जा ली। निर्मला हाल ही में पेटलावद से विधानसभा चुनाव भी हार गई। इस सीट पर भाजपा के पास जिताऊ उम्मीदवार नहीं है।
बैतूल : इस सीट पर पिछले सात बार से भाजपा का कब्जा है। 2009 के परिसीमन में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हुई इस सीट से दो बार से भाजपा की ज्योति धुर्वे सांसद हैं, लेकिन इस बार उनके जाति प्रमाण पत्र को लेकर संकट है। बैतूल लोकसभा क्षेत्र की आठ में से चार विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। यहां भी पार्टी के पास कोई बड़ा आदिवासी चेहरा नहीं है।
धार : 2014 में मोदी लहर में सांसद बनीं सावित्री ठाकुर को लेकर स्थानीय संगठन में ही असंतोष है। यह कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है और विधानसभा चुनाव में भी यहां की आठ में से दो सीटें भाजपा के हाथ आई हैं। पार्टी यहां उम्मीदवार बदलने की तैयारी में है।
खरगौन : इस लोकसभा की आठ मेंं से एक विधानसभा सीट भाजपा के पास है। वर्तमान सांसद सुभाष पटेल भी मोदी लहर मेंं जीतकर आए थे। संगठन नया चेहरा तलाश रहा है।
मंडला : पूर्व केंद्रीय मंत्री फग्गन ङ्क्षसह कुलस्ते यहां से पांच बार सांसद चुने गए हैं, लेकिन 2009 में वे कांग्रेस के बसोरी सिंह मसराम से चुनाव हार गए थे। कुलस्ते भाजपा का बड़े आदिवासी चेहरा माने जाते हैं।
शहडोल : पूर्व मंत्री ज्ञान ङ्क्षसह यहां ये 2016 में उपचुनाव में जीत कर सांसद बने। वे एक बार फिर टिकट की दावेदारी कर रहे हैं।