अब उनकी नजरें 100 मैराथन पूरी करने पर टिकी हैं। बैरागढ़ निवासी अशोक माध्यमिक शिक्षा मंडल में फोर्थ ग्रेड की नौकरी करते हैं। वे अब जनवरी में मुंबई मैराथन में दौड़ेंगे। जिसके वे तैयारियों में जुटे हुए हैं। हाल ही में उन्होंने कारगिल मैराथन में पांचवां स्थान पाया है, जिसमें उन्होंने 42 किमी की रेस पूरा किया था।
जुनून को देखकर हैरान हो जाते है लोग
अशोक बताते हैं कि मेरे लिए दौडऩा तीर्थ से कम नहीं हैं। अपनी रेसों के दौरान में देश के कई राज्यों में मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारों का भ्रमण करता हूं, वहां मुझे लोग मिलते हैं और मेरी इस जुनून को देखकर हैरान भी हो जाते हैं। बता दें कि अशोक को उनके परिवार वाले दौडऩे के लिए मना करते थे, पर वे नहीं माने।
रोजाना सुबह 4 बजे निकलते है अशोक
एक दिन में दौड़ते हैं 21 किमी अभी तक जीते हैं 20 मैराथन वे फिटनेस के लिए दिन में 21 किमी तक दौड़ते हैं। सुबह चार बजे उठते हैं। अपनी एनर्जी बनाए रखने के लिए वे नॉनवेज खाते हैं। अपनी कुल 80 रेसों में उन्होंने 20 रेसों में विनर बने हैं। इस दौरान उन्होंने युवाओं को भी अपनी जुनून के आगे हराया है, जबकि 60 मैराथन को पूरा किया है। इस दौरान उन्होंने बड़ौदा इंटरनेशनल मैराथन, गोवा मैराथम, कोच्चि मैराथन, हैदराबाद मैराथन और देश की सबसे बड़ी दिल्ली मैराथन में दौड़ चुके हैं।
अशोक बाथम के इसी जबे ने उनका नाम देश के उन चुनिंदा धावकों में शुमार कर दिया है, जो देश में कहीं भी होने वाली मैराथन में शिरकत करने को आतुर रहते हैं। बाथम ने बताया कि 1987 के सिओल ओलंपिक की मशाल जब भारत आई तो भोपाल में ओलिंपियन लक्ष्मण शंकर के साथ उन्हें भी मशाल लेकर दौडऩे का मौका मिला, तब से वे खुद के खर्च पर मैराथन में दौड़ रहे हैं। पैसें की कमी होने पर दूसरे से उधार ले लेकर रेस पूरी करते हैं।