अटल-आडवाणी कमल निशान
म प्र के सियासी मंच पर अटल-आडवाणी व कमल निशान दिखाई देगा। भाजपा अध्यक्ष पहले ही कह चुके हैं कि विधानसभा चुनाव संगठन के चेहरे पर लड़ा जाएगा। इस जोड़ी को संगठन का चेहरा बनाया जाएगा। मंच पर राजमाता सिंधिया भी नजर आने वाली हैं। प्रदेश की राजनीति और सीएम शिवराज सिंह चौहान पर इन दोनों नेताओं का बहुत प्रभाव है।
2014 में भाजपा की राजनीति के केंद्र में नरेंद्र मोदी के आने से पहले सीएम हर बड़े फैसले लेने के पहले इनसे मंत्रणा करने दिल्ली जाते थे। 2014 के बाद अटल-आडवाणी मंच व भाषण से गायब हो गए। फिर सीएम के भाषणों में इनका जिक्र होगा। बड़े स्क्रीन पर दृश्य व भाषण सुनाए जाएंगे। आडवाणी की रथ यात्रा का जिक्र होगा, जिसने भाजपा को देश की नंबर दो सियासी पार्टी बना दिया था। राम मंदिर और हिंदुत्व की मजबूत जमीन तैयार की थी।
पश्चिम उत्तरप्रदेश में भाजपा ने राजनीतिक समीकरण के तहत दलित, पिछड़े और जाट वोटों को साधने के लिए डॉ. आंबेडकर और चौधरी चरण सिंह के बड़े-बड़े होर्डिंग लगाए हैं। लंबे समय से अलग-थलग पड़े आडवाणी के कटआउट भी अटल के साथ लगाए गए हैं। इसको 2019 के चुनाव से जोडकऱ देखा जा रहा है।
भाजपा को लगता है, मप्र में 15 साल की एंटी इन्कमबेंसी को दूर करने में अटल-आडवाणी की जोड़ी मददगार साबित होगी। 23 हजार ग्राम पंचायत व हर वॉर्ड में अटल की श्रद्धांजलि सभा कर पार्टी लोगों की उनके प्रति श्रद्धा को सियासी फायदे में बदलना चाहती है। अटल-आडवाणी के प्रति लोगों की संवेदना को भाजपा चुनावी लाभ बनाकर मौजूदा विधायकों और सरकार के प्रति नाराजगी दूर करने की फिराक में है। कांग्रेस का कहना है कि 10 अलग-अलग नदियों में यात्रा निकालकर अस्थि कलश विसर्जन कर भाजपा ने प्रदेश के बड़े हिस्से में सहानुभूति का माहौल बनाने की कोशिश की है। पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह का कहना है कि अस्थि कलश विसर्जन में भी भाजपा राजनीति से नहीं चूकी।
लोकेंद्र पाराशर, मीडिया प्रभारी भाजपा