टिकट बंटवारे के पहले प्रदेश की अधिकांश सीटों पर हुज्जत रही। टिकट कटने और टिकट न मिलने से विरोधी सुर उठे। कई तो बागी होकर चुनाव मैदान में कूद पड़े, इससे यहां त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बनी। इनको मनाने में राजनैतिक दल सफल रहे और कई ने नामांकन वापस ले लिए। इससे दलों ने राहत की सांस ली।
मालवा निमाड़ की बात करें तो तीसरी शक्ति कहे जाने वाले जयस ताल ठोंक रहा था। धार-झाबुआ, रतलाम, बड़वानी और खरगोन के आदिवासी इलाकों में इसका प्रभाव है। जयस प्रत्याशी महेन्द्र कन्नौज ने गुरुवार को अचानक नाम वापस ले लिया। ये धार लोकसभा से प्रत्याशी थे। इससे कांग्रेस का टेंशन कम हुआ। कांग्रेस से यहां दिनेश गिरवाल मैदान में हैं। जबकि भाजपा से छतर ङ्क्षसह दबार चुनाव लड़ रहे हैं।
खरगौन लोकसभा से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप ताल ठोंकने वाले सुखलाल परमार नामांकन वापस लेकर मैदान से बाहर हो गए हैं। ये कांग्रेस से टिकट के दावेदार थे। ऐसे में अब यहां कांग्रेस के डॉ. गोविंद मुजाल्दा और भाजपा से गजेन्द्र सिंह पटेल के बीच आमने-सामने का मुकाबला हो गया है।
मालवा की खण्डवा लोकसभा सीट की बात करें तो यहां भाजपा और कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्षों (नंद कुमार सिंह चौहान और अरुण यादव) की किस्मत दांव पर है। बुरहानपुर से निर्दलीय विधायक सुरेन्द्र सिंह ठाकुर शेरा भैया की पत्नी जयश्री ने नामांकन दाखिल कर मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया था। मुख्यमंत्री कमलनाथ से मुलाकात के बाद यहां स्थितियां बदली और गरुवार को उनकी पत्नी ने नाम वापस ले लिया।
यहां भी बदली स्थिति – बुंदेलखण्ड के सागर की बात करें तो यहां भाजपा के मुकेश जैन ढाना टिकट न मिलने से निर्दलीय नामांकन दाखिल कर दिया था। वरिष्ठ नेताओं की समझाइश पर इन्होंने नामांकन वापस लिया। पार्टी के कार्यक्रमों में शिरकत कर रहे हैं। राजगढ़ लोकसभा से बसपा प्रत्याशी निशा त्रिपाठी के मैदान से हटने के कारण यहां अब त्रिकोणीय मुकाबला नहीं रहा।
बसपा ने यहां से पहली बार महिला प्रत्याशी को उम्मीदवार बनाया था। बसपा प्रत्याशी लोकेन्द्र सिंह राजपूत तो गुना से चुनाव लड़ रहे थे। कांग्रेस प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया की मौजूदगी में इन्होंने कांग्रेस का दामन थामकर सभी को चौंका दिया। हालांकि इसको लेकर कांगे्रस और बसपा में कड़वाहट भी सामने आई।