अली अहमद फातमी ने इकबाल की शायरी में मकामियत पर चंद बातें विषय पर अपना मकाला पढ़ते हुए कहा कि इकबाल हमारे मुल्क के मुफक्किरीन जैसे श्रीराम, भृत्हारी, स्वामी रामतीर्थ, नानक से किस तरह मुतास्सिर थे इस बात की मकाले में तफसील बताई गई है। नईम कौसर ने अपना मकला पढ़ते हुए कहा कि की रेहलत पर जोश मलीहाबादी ने अपनी इदारत में प्रकाशित होने वाले महानामा कलीम के मई 1938 के अंक में इकबाल की रहलत के उनवान से अपने इदारिए में लिखा इकबाल हर हालत और हर रंग में इकबाल था। अफसोस कि हमारी शायरी का आफताब डूब गया। इकबाल उन लोगों में से था जो सदियों और करनों में पैदा होते हैं।
तेरे पीछे तिरे अहबाब जो कहते हैं तुझे
शाम को रवीन्द्र भवन में अखिल भारतीय मुशायरे का आयोजन किया गया। इसमें गुलजार देहलवी, शहपर रसूल, दिल्ली, डॉ. नसीम निकहत, लखनऊ, शकील आजमी, मुम्बई, अजीज नबील, कतर, लियाकत जाफरी, कश्मीर, शकील जमाली, इकबाल अशहर, दिल्ली, अज्म शाकिरी, एटा, नईम अख्तर खादमी, बुरहानपुर, मलिक जादा जावेद, नोएडा, महशर आफरीदी, रूढ़की, मुनव्वर जाफरी, लखनऊ और भोपाल से जफर नसीमी, नसीर परवाज़, फ़ारूक अंजुम, आफताब आरिफ़, डॉ. अर्जुमन्द बानो, मसूद भोपाली, परवेज अख्तर तथा डॉ. नसीम खान ने कलाम सुनाया। मुशायरे की अध्यक्षता गुलजार देहलवी ने और संचालन शकील जमाली ने किया।
कुछ इस तरह के कलाम सुनने को मिले 1. नसीम निकहत
तेरे पीछे तिरे अहबाब जो कहते हैं तुझे तू अगर सुनले तेरे होष ठिकाने लग जायें
2- अजीज नबील मुस्कुराना किसे अच्छा नहीं लगता ऐ दोस्त
मुस्कुराने का कोई लम्हा मयस्सर भी तो हो
फुज़ूल वक्त में वह सारे शीषागर मिलकर सुहागनों के लिये चूडिय़ां बनाते थे
4- इकबाल अश्हर सितम तो यह कि हमारी सफों में शामिल हैं
चिराग बुझते ही खेमा बदलने वाले लोग
नईम उसका बिगाड़े का कोई क्या खुदा जिसको बनाना चाहता है