दरअसल भोज विवि प्रबंधन जल्द ही समस्त प्रक्रिया को ऑनलाइन करने जा रहा है। इसमें विद्यार्थियों के प्रवेश से लेकर उनके संपर्क तक की व्यवस्था शामिल है। इसके लिए एक बड़ा सेटअप तैयार किया जा रहा है। सत्र 2019-2020 से विश्वविद्यालय आधार कार्ड अथवा अन्य दस्तावेज के माध्यम से विद्यार्थियों के सही पोस्टल एड्रेस भी प्रवेश के समय ही दर्ज कर लेगा। इसके बाद जब अंक सूची या फिर डिग्री बनकर तैयार होगी वह सीधे विद्यार्थी के एडे्रस पर पोस्ट कर दी जाएगी।
वर्तमान में विद्यार्थियों की अंकसूचियां और डिग्री विभिन्न शहरों में बने रीजनल सेंटर्स पर भेजी जाती हैं। इसके बाद यहां से उनका वितरण किया जाता है। कई बार विद्यार्थियों को बार-बार चक्कर लगाने के बाद भी अंक सूचियां नही मिलती। इसकी शिकायत भी छात्रों ने प्रबंधन से की है। अंकसूची और डिग्री आदि के लिए विद्यार्थियों से पैसे लेने की शिकायतें भी आई हैं।
अगले सत्र से विद्यार्थियों को अंकसूचियां और डिग्रियां डाक के माध्यम से उनके पते पर भेजी जाएंगी। इसके लिए तैयारी शुरू कर दी गई है। विवि विद्यार्थियों को अधिक से अधिक सुविधा देने का प्रयास कर रहा है।
अरुण चौहान, रजिस्ट्रार भोज विवि
45 कॉलेजों ने उपयोग नहीं की यूजीसी की 13.64 लाख की ग्रांट, हुई लैप्स
भोपाल। अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग के विद्यार्थियों को सक्षम बनाने के लिए प्रशिक्षण देने, विशेष कक्षाएं लगाने जैसे मुद्दों पर शासकीय महाविद्यालय हमेशा फंड का रोना रोते रहते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि महाविद्यालयों के प्राचार्य और प्रबंधन विभिन्न मदों से मिलने वाली राशि का उपयोग तक नहीं कर पाते। यानी यहां ऐसे जरूरतमंद विद्यार्थियों के लिए पर्याप्त कार्य ही नहीं किया जाता। इसी का नतीजा है कि यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) द्वारा विद्यार्थियों के कौशल विकास के लिए जारी की गई राशि का 13.64 रुपए प्रदेश के 42 महाविद्यालय उपयोग ही नहीं कर पाए। यह राशि लैप्स हो गई। उ”ा शिक्षा विभाग ने ऐसे महाविद्यालयों को चेतावनी जारी की है।
उ”ा शिक्षा विभाग ने विभिन्न मदों से मिलने वाली राशि के उपयोग की जानकारी के लिए वर्ष 2012-2013 की विभागीय आडिट रिपोर्ट का परीक्षण किया। इसमें यह तथ्य निकल कर आया कि 11वीं योजना में अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग के विद्यार्थियों को सक्षम बनाने, उन्हें प्रशिक्षण आदि प्रदान करने के लिए यूजीसी ने सीधे महाविद्यालयों को धनराशि प्रदान की। 88 महाविद्यालयों का रैंडम निरीक्षण करने पर पता चला कि 45 महाविद्यालयों ने उन्हें प्रदान की गई राशि का पूर्ण उपयोग ही नहीं किया। ऐसे में 13.64 लाख रुपए वापस करने पड़े। महाविद्यालयों द्वारा इस राशि का उपयोग नहीं करने का अर्थ यह है कि इन विद्यार्थियों के लिए न तो पर्याप्त प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए और न ही उन्हें कुशल बनाने के लिए कार्य किया गया। इस स्थिति पर चिंता जताते हुए विभाग ने सभी प्राचार्यों को चेतावनी जारी कि है कि यूजीसी द्वारा प्रदान की गई राशि का समय सीमा में उपयोग किया जाए। प्राचार्य उ”ा शिक्षा आयुक्त को उपयोगिता प्रमाणपत्र भी प्रस्तुत करें।