कर दिया हिसाब बराबर
पिता के अपमान का बदला सजा दिलाकर लेने वाली इस बहादुर और मजबूत इच्छा शक्ति का उदाहरण बनी है अभिलाषा जाट। हालांकि हिसाब बराबर करने में उसे बरसों लगे। बरसों के संघर्ष के बाद हाल ही में अभिलाषा ने तीन आरोपियों पवन, जोगिंद्र और विक्रम को हाईकोर्ट से सात-सात साल की सजा दिलवाकर ही आज वह आराम से बैठी है।
ऐसे आसान हुआ बदला लेना
अभिलाषा के लिए पिता की मौत का बदला लेना आसान नहीं था। खुद अभिलाषा बताती है कि आज वह मध्यप्रदेश के सागर के कैंट थाने में पदस्थ है। सितंबर 1997 में एक दिन जब वह स्कूल से लौटी, तो देखा घर पर कोई नहीं है। पता चला कि पिता मुरारी लाल जाट का झगड़ा हो गया है। मैं दौड़कर सीधे खेत पहुंची और मां को बताया। दरअसल गांव के कुछ लोगों ने जंगल में अकेला घेरकर पिता को बहुत बुरी तरह से पीटा था। बड़े पापा उन्हें अस्पताल लेकर गए। जब पिता को अस्पताल में देखा तो, उनके पूरे शरीर पर पट्टी बंधी थी। सिर्फ चेहरा दिख रहा था। वे दर्द से तड़प रहे थे। मैंने तभी ठान लिया था कि पिता का अपमान करने वालों को सजा जरूर दिलाऊंगी। इसके लिए मैंने तैयारी की और पुलिस फोर्स जॉइन की। तब जाकर मेरे लिए अपने पिता का बदला लेना आसान हुआ।
हड़प ली थी जमीन भी
दिवंगत मुरारी के बड़े भाई राधेश्याम बताते हैं कि उनक भाई के सभी बच्चे अकेले पड़ गए थे। किसी ने मदद नहीं की। मुरारी लाल के पास तीन एकड़ से ज्यादा जमीन थी। बच्चों ने इस पर खेती शुरू की थी। पर कुछ लोग जमीन हड़पने की मंशा से फसलें बर्बाद कर देते थे। स्थिति इतनी बदतर हुई कि धीरे-धीरे दबाव बनाकर उनसे जमीन भी हड़प ली गई। अभिलाषा ने ही पिता के लिए लड़ाई लड़ी और परिवार को भी संभाला।
अभिलाषा बताती हैं कि हमले में पिता को बहुत बुरी तरह से चोटें आई थीं। सागर में इलाज चलने के बाद उन्हें जबलपुर रैफर किया गया। इसके बाद हम उन्हें घर ले आए। दरअसल पिताजी के इलाज में बहुत पैसे खर्च हो चुके थे। उनका इलाज हमें महंगा और भारी पड़ रहा था। घर में मां, हम तीन बहनें और एक भाई है। लेकिन उस समय घर पर कमाने वाला कोई और नहीं था। सारी जिम्मेदारी मेरे कंधों पर आ गई। घर में गाय-भैंसें थीं, उनका दूध बेचकर घर का खर्च चलता और पिता की जरूरी दवाई आतीं। ठीक से इलाज न मिल पाने के कारण 2012 में पिता चल बसे।