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भोपाल

दोनों के लिए आसान नहीं बैरसिया सीट, भाजपा से नाराजगी, कांग्रेस में गुटबाजी

berasia vidhan sabha election 2018 – दोनों के लिए आसान नहीं बैरसिया सीट, भाजपा से नाराजगी, कांग्रेस में गुटबाजी

भोपालSep 08, 2018 / 07:54 am

KRISHNAKANT SHUKLA

berasia vidhan sabha election 2018

दोनों के लिए आसान नहीं बैरसिया सीट, भाजपा से नाराजगी, कांग्रेस में गुटबाजी

@सुनील मिश्रा की रिपोर्ट..

भोपाल. बैरसिया विधानसभा क्षेत्र से चुनावी मैदान में उतरने के लिए भाजपा और कांग्रेस के कई नए उम्मीदवार ताल ठोक रहे हैं। 2013 में तीसरे स्थान पर रही बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार ने भी मैदान नहीं छोड़ा है। वहीं, भाजपा विधायक विष्णु खत्री ने पिछले वादे पूरे नहीं किए, जिससे मतदाता नाराज हैं। कांग्रेस से टिकट की दौड़ में पूर्व प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल हैं।

ये नाम चर्चा में
विष्णु खत्री – विधायक।
ब्रह्मानंद रत्नाकर- पूर्व विधायक।
गणेश राम मेहर- संघ से जुड़े ग्राम भारती के प्रदेश उपाध्यक्ष
किशन सूर्यवंशी- पूर्व पार्षद भोपाल।
मोहिनी शाक्यवार- क्षेत्र में सक्रिय।
लक्ष्मीनारायण शिल्पी-क्षेत्र में सक्रिय।
शशि कर्णावत – बर्खास्त आइएएस।
जयश्री हरिकरण – महिला कांग्रेस की जिलाध्यक्ष।
राम मेहर – जिला ग्रामीण के उपाध्यक्ष।
एमसी किशोर – रिटायर्ड डिप्टी कलेक्टर। बैरसिया में एसडीएम
भी रहे हैं।
अनीता अहिरवार – 2013 की प्रत्याशी।
शिवनारायण अहिरवार – जिला पंचायत सदस्य।

इस बार चुनौती
भाजपा : वोटरों की नाराजगी। बेरोजगारी से युवा मायूस हैं। स्थानीय उम्मीदवार का मुद्दा भी उछल सकता है।
कांग्रेस : पार्टी में गुटबाजी। क्षेत्र में सर्वमान्य नेता कोई नहीं। बाहरी उम्मीदवार होने से भितरघात की आशंका।

सडक़ें बदहाल हैं। लो-फ्लोर बसें भी बैरसिया तक नहीं आ पाई हैं। स्वास्थ्य सेवाएं चरमराई हुई हैं। डिलेवरी तक के लिए भोपाल जाना पड़ता है। राजेन्द्र कुमार, व्यवसायी, बैरसिया

वोट का गणित
गुर्जर समाज के 50 हजार से अधिक वोटर हैं। दूसरे नंबर पर अनुसूचित जाति और फिर सवर्ण समाज के वोट हैं।

प्रमुख मुद्दे
बेरोजगारी और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी। बैरसिया तक लो-फ्लोर बस न चल पाना।

विधायक का परफॉर्मेंस
क्षेत्र के लोगों में नाराजगी है। वे बैरसिया के विधायक हैं, लेकिन रहते भोपाल में हैं। लोग अपनी समस्याएं उन्हें नहीं बता पाते। उन्होंने 2013 कई वादे किए थे, लेकिन अधिकांश पूरे नहीं हुए। चुनाव के बाद कई क्षेत्रों में वे गए ही नहीं हैं।

कांग्रेस बदलेगी सोशल मीडिया के लाइक-फॉलोअर्स का फॉर्मूला

इधर, कांग्रेस में टिकट को लेकर घमासान तेज हो गया है। इसके बावजूद जिन सीटों पर भाजपा के बड़े नेता चुनाव लड़ेंगे, उन पर कांग्रेस नामों की घोषणा नामांकन के वक्त ही करेगी। वहीं, पार्टी ने टिकट के लिए फेसबुक पर 15 हजार लाइक्स और ट्विटर पर पांच हजार फॉलोअर्स की अनिवार्यता वाला फरमान वापस ले लिया है। दरअसल, इस फरमान के बाद प्रदेश में आइटी कंपनियां सक्रिय हो गई थीं, जो मोटी रकम लेकर लाइक्स और फॉलोअर्स बनाने का ऑफर दे रही थीं। इस पर विवाद हुआ था।

नोएडा की कंपनी ने भेजी थी रेट लिस्ट
नोएडा की एक आइटी कंपनी ने दावेदारों को जो मैसेज किए हैं, उनमें लिखा है कि सात दिन में फेसबुक पर 15 हजार लाइक्स कर दिए जाएंगे। इसकी फीस 10 हजार रुपए है। इसके अलावा ट्विटर पर 15 दिनों में पांच हजार फॉलोअर्स बना दिए जाएंगे। इसके लिए दावेदार को 15 हजार रुपए चुकाने होंगे।

प्रत्याशियों को अपने पाले में खींचने की भाजपा की रणनीति की आशंका पर कांग्रेस विशेष सावधानी बरत रही है। पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के मुताबिक जिन सीटों पर भाजपा के बड़े नेता प्रत्याशी होंगे, उन पर कांग्रेस उम्मीदवारों की घोषणा नामांकन के वक्त ही करेगी। पार्टी ने तय किया है कि चुनाव की घोषणा के बाद ऐसे उम्मीदवारों को संकेत दे दिया जाएगा। प्रदेश के प्रत्याशियों के पैनलों की छंटाई का पहला दौर पूरा हो गया है और जल्द ही एक सूची केन्द्रीय चुनाव समिति को भेज दी जाएगी।

विधायकों कट सकते हैं टिकट
चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि कांग्रेस में सिटिंग-गेटिंग फॉर्मूला नहीं है। यानी हर सिंटिंग एमएलए को टिकट देना जरूरी नहीं है। सिंधिया ने एक सभा में पवई के विधायक मुकेश नायक का हाथ उठाकर उनको 50 हजार से ज्यादा वोट से जिताने की अपील भी लोगों से की। इस तरह उम्मीदवार घोषित करने पर भी कांग्रेस के अंदर विवाद शुरू हो गए हैं।

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