15 साल बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार
लोकसभा चुनाव से पहले मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की और 15 साल बाद सत्ता में वापसी की। जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। लेकिन इस बार प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव जीतने के बाद अपने संगठन में कोई बदलाव नहीं किया है। कमलनाथ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ-साथ प्रदेश अध्यक्ष हैं। कमलनाथ उम्मीदवारों के चयन से पहले स्थानीय स्तर पर रायशुमारी कर रहे हैं। तो वहीं, भाजपा ने विधानसभा में हार के बाद शिवराज सिंह चौहान को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया है। शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश में अभी भी सक्रिय हैं और 2014 के प्रदर्शन को दोहराने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर होगी, क्योंकि शिवराज सिंह के अलावा मध्यप्रदेश में कोई ऐसा बड़ा नेता नहीं है जिसका प्रदेश के हर जिले और हर विधानसभा सीट पर सीधा संवाद होता हो।
सांसदों से नाराजगी
2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने 27 सीटों पर जीत दर्ज की थी। गुना-शिवपुरी और छिंदवाड़ा संसदीय सीट को छोड़कर भाजपा ने सभी सीटों पर जीत का परचम लहराया था। 2014 के चुनाव के बारे में कहा जाता है कि जनता ने वोट सांसद चुनने के लिए नहीं बल्कि मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए किया था। मोदी सरकार के पांच सालों के कार्यकाल के बाद भाजपा के कई मौजूदा सांसदों के टिकट कटने की संभावना है। 29 में से ज्यादातर सीटों पर उम्मीदवारों के नाम कटने तय माने जा रहे हैं ऐसे में बगावत भाजपा के लिए बड़ी मुश्किल बन सकती है। कई सांसद अपनी सीट बदलना चाहते हैं तो कई सांसदों का क्षेत्रीय स्तर पर भारी विरोध है ऐसे में भाजपा पर 2014 का प्रदर्शन दोहराने की राह मुशकिल हो सकती है।
बाबूलाल गौर एक बार फिर से टिकट की मांग को लेकर आड़ गए हैं। बाबूलाल गौर भोपाल लोकसभा सीट चुनाव लड़ने की इच्छा जता चुके हैं। दूसरी तरफ डॉ रामकृष्ण कुसमारिया भाजपा का दामन छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। माना जा रहा है कि इस बार कांग्रेस उन्हें दमोह लोकसभा सीट से उम्मीदवार बना सकती है। रामकृष्ण कुसमारिया के दमोह लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनने से भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। सरताज सिंह भी भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। हालांकि सरताज सिंह और रामकृष्ण कुसमारिया अपना-अपना विधानसभा चुनाव हार गए हैं। भाजपा के कई कद्दावर नेता मौजूदा सांसदों का विरोध कर रहे हैं। इंदौर में सुमित्रा महाजन की फिर से दावेदारी की बात सामने आने के बाद से कई भाजपा नेता नाराज हैं और उनके खिलाफ चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं। ऐसे में भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ना तय माना जा रहा है।
2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को कांग्रेस के मुकाबले पांच सीटें कम मिली हैं। लेकिन वोट प्रतिशत भाजपा का ज्यादा है। 2014 के लोकभा चुनाव में भाजपा को 54.03 फीसदी वोट मिले थे जबकि कांग्रेस को 34.89 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन विधानसभा चुनावों के वोट प्रतिशत में भाजपा को नुकसान हुआ था जबकि कांग्रेस को फायदा। भाजपा को 41 फीसदी वोट मिले थे जबकि कांग्रेस को इस चुनाव में 40.9 फीसदी वोट मिले थे। ऐसे में वोट बैंक को वापस लाना भी भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकती है।
इस लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में भाजपा की तरफ शिवराज सिंह चौहान मोर्चा संभाल सकते हैं तो कांग्रेस का पूरा दारोमदार कमलनाथ पर है। किसान कर्जमाफी की घोषणा के बाद कमलनाथ जनता के बीच किसानों का क्षेत्रीय मुद्गा लेकर जाएंगे वहीं, शिवराज सिंह चौहान मोदी कार्यकाल के कामों की उपलब्धि लेकर जनता के बीच चुनावी मंच पर पहुंचेंगे। ऐसे में सीधा मुकाबला यहां कमलनाथ औऱ शिवराज के बीच ही होगा।