राम का चरित्र निभा रहे लोक कलाकार
जहां समाज का हर व्यक्ति दोहरा चरित्र रखता है और हर दूसरे व्यक्ति को अच्छे और नेक काम करने की नसीहत देता है। नाटक में एक बच्चा समाज के दोहरे उसूलों को समझ नहीं पाता। वो रामलीला में राम का चरित्र निभा रहे लोक कलाकार को वास्तविक भगवान राम समझ बैठता है।
नर्तकियों पर खूब पैसा लुटाते
जब रामलीला के आयोजन हेतु जब चंदा कम पड़ता है, तो गांव का चौधरी नई तरकीब निकालता है और नर्तकियों को बुलाकर नृत्य आयोजित करवाता है। गांव के लोग नर्तकियों पर खूब पैसा लुटाते हैं। उन्हीं लोगों में उस बच्चे का पिता भी होता है। नर्तकियों पर अपने पिता को पैसे लुटाते देखकर वो बच्चा स्वयं को लज्जित महसूस करता है।
नर्तकियों पर उड़ाते हैं लेकिन रामजी के नाम पर नहीं देते पैसा
वहीं रामलीला के समापन पर रामलीला में राम-लक्षमण और सीता का चरित्र निभा रहे लोक कलाकारों को चौधरी बिना पैसे दिये ही वापस कर देता है। रामजी को खाली हाथ जाते देख, वो बच्चा अपने पिता के पास जाता है और पैसे मांगता है।
लेकिन वो पैसे देने से इनकार कर देता है, फिर वो बच्चा अपने जेब खर्च से बचाए पैसे रामजी को देता है, जिसे लेकर वो चले जाते हैं। उस नन्हें बालक का मन यह देखकर व्यथित हो जाता है कि नर्तकियों के लिए सारे लोग यहां तक की उसके पिता भी पैसे लुटाते हैं लेकिन रामजी के नाम पर कोई पैसे नहीं देता। समाज के इस दोहरे चरित्र को बच्चा समझ नहीं पाता है।