प्रचार के लिए सोशल मीडिया का उपयोग बढ़ा
वर्तमान के चुनावों में प्रचार का मुख्य जरिया प्रत्याशियों ने सोशल मीडिया यानी फेसबुक और व्हाट्सएप को बना लिया है। जिसके जरिए आसानी से लोगों तक कम खर्चे में पहुंचा जा सकता है। प्रत्याशियों के फेसबुक पर अकाउंट व पेज बने हुए हैं, जिसके जरिए वे वोटरों तक अपना संदेश आसानी से पहुचा पाने में सफल हो रहे है। उनके समर्थकों द्वारा इन पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करने का भी काम किया जा रहा है। इस मध्यम के जरिए प्रत्याशियों की बात आसानी से वोटरों तक पहुंच रही है। हालाकि फेसबुक अकाउंट और पेज की पब्लिक सिटी करने के लिए अलग से ऑपरेटर व कंपनियां भी काम करने लगी है ।
चुनाव आयोग की लगाम का असर
घरों के बाहर प्रत्याशियों के चुनाव चिन्ह से छपी दीवारें व समर्थकों के सिर पर टोपीयां या बिल्ले यह दर्शाते थे, कि निर्वाचन की सरगर्मी तेज हो गई है और मतदान का समय करीब आने लगा है। लेकिन चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों के बढ़ते खर्च को देखते हुए निर्वाचन आयोग ने चुनावी खर्चे की सीमा तय कर दी थी जिसके बाद सख्ती से निगरानी भी होने लगी है। इसी कारण लोगों ने चुनावी सामग्री पर पैसे खर्च करना बंद कर दिया है। निकाय चुनाव में वर्तमान में केवल हैंड बिल का ही चलन रह गया है जो प्रत्याशी व समर्थक अपने वोटरों के घर–घर तक पहुंचा देते हैं ।
60 से 70 प्रतिशत तक कम हुआ व्यापार
प्रदेश की विधानसभा के पास चुनाव प्रचार सामग्री की दुकान चला रहे शीला एंड मेकर्स के अजय अग्रवाल का कहना है की कोरोन के बाद से पार्टियां जनसंपर्क के लिए सोशल मीडिया का उपयोग अधिक कर रहे हैं। जिसके वजह से आउटडोर कैंपेनिंग काम हो गया है, जिसकी वजह से चुनाव प्रचार सामग्री की बिक्री पर लगभग 60 प्रतिशत की कमी आई है।
वही झलक इंटरप्राइजेज के राकेश अग्रवाल का कहना है की चुनाव प्रचार की सामग्रियां थोड़ी महंगी हो चुकी हैं प्लास्टिक के बैन हो जाने के कारण चुनाव प्रचार की सामग्रियों को बनाने में कागज और कपड़े का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसके वजह से दाम बढ़ गए हैं। पार्टियों के झंडे 5 रुपए से 200 रुपए तक में उपलब्ध हैं इसी तरह पटका 2 रुपए से 10 रुपए तथा विभिन्न पार्टियों के टीशर्ट 100 से 250 रुपए तक में मिल रहे हैं।