आयोजित सभाओं में श्रोता-दर्शकों ने ‘मल्हार”के विभिन्न् अंगों का आनंद लेकर दिन यादगार बनाया। इस मौके पर शास्त्रीय गायिका शास्वती मंडल ने राग जयंत मल्हार में बड़ा खयाल ‘चमकत बिजुरिया आई री बदरिया…”सुनाया। इसके बाद राग बागेश्री में टप्पा की प्रस्तुति दी। यह प्रस्तुति रूपक ताल में निबद्ध रही। कार्यक्रम का संचालन कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने किया।
संगीत सभा में शास्त्रीय गायिका मधुमिता नकवी ने गायन की शुरुआत खयाल से की। छोटे खयाल में उन्होंने ‘उमड घुमड आयो रे बदरा….” बंदिश सुनाई। इसके बाद राग गोड मल्हार में खयाल ‘घनघोरी आयोरी मां….” और मिया मल्हार में छोटा खयाल ‘बोले पपीहरा…” सुनाया।
प्रस्तुति का समापन उन्होंने राम मिश्र खमाज में झूला ‘सावन की ऋतु आई रे बलमा…” सुनाई। मधुमिता ने रागों के विषय में बताया कि इन रागों को किसी भी समय गाया जा सकता है। इन्हें गाने के लिए बारिश होने का इंतजार करने की जरूरत नहीं है। इस राग को गाने से हृदय में एक प्रसन्न्ता, हरियाली, खुशहाली का भाव प्रकट होता है। प्रस्तुति उनके साथ हारमोनियम पर प्रतिमा दास मजूमदार, तबले पर सलीम अल्लावाले और वायलिन पर राघवेंद्र व्यास ने लहरा दिया।
गायक विवेक करमहे की शानदार प्रस्तुति हुई। उन्होंने गायन की शुरुआत के लिए राग गोड़ मल्हार का चयन किया। इस राग को विस्तार देते हुए उन्होंने ग्वालियर घराने की पारंपरिक रचना ‘पपि दादरवा बुलाए रे….” सुनाई। यह रचना तिलवाड़ा ताल में निबद्ध रही। इसके बाद इसी राग में तीन ताल की रचना ‘बदरिया छाई सावन की…” सुनाई।