उन्होंने बताया कि तुलसीदास के समय भी एक ऐसी ही बीमारी आई थी। नाटक में दिखाया गया कि स्वर्ग लोक से गोस्वामी तुलसीदास एक दिन के लिए पृथ्वी पर लोगों से मिलने आते हैं। वे सभी को अपनी कहानी सुनाते हैं। इसमें उनके जन्म से लेकर मृत्यु तक की कहानी होती है। शेखर ने बताया कि भारतीय समाज पलायनवादी समाज है। जब गांव में कोई भी संकट आता है तो सभी लोग वहां से चले जाते हैं। इसके लिए उन्होंने गांव-गांव में अखाड़े बनवाए। जिससे बहुजन को जोड़ा जा सके। साथ ही किसी आपात स्थिति में युवा एकजुट होकर लोगों की मदद कर सकें। उस समय एक बीमारी फैली थी, तब काशी से लोग पलायन कर रहे थे। तब तुलसीदास लोगों के बीच रहकर उनका उपचार करते रहे। मृत लोगों का दाह संस्कार किया। साथ ही वे लोगों को बीमारी से निपटने के उपाय भी बताते हैं।
ऐसे आया नाटक लिखने का विचार
मैं 1997 में अपने माता-पिता को लेकर जर्मनी यात्रा पर गया था। वहां मैंने अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन में भाग लिया। फिर मैं पोर्ट ऑफ स्पेन गया, वहां देखा कि सीताराम की मूर्ति और हनुमान की मूर्ति से बड़ी Óगोस्वामी तुलसीदासÓ की 30 फीट की मूर्ति बनाई गई थी। पूजारी ने कहा कि तुलसीदास जी ने हमें राम के बारे में बताया है। इसलिए यहां सबसे पहले उन्हें ही पूजा जाता है। तभी से मेरे मन में उनकी जीवनी पर नाटक लिखने का विचार आया। उन्होंने बताया कि मैं कांच के सामने खड़े होकर रिर्हसल करता हूं, ताकि ये जान सकूं कि एक्ट करते समय बॉडी मूवमेंट के चलते दर्शक और मेरे बीच कहीं मेरे चेहरा-मेरे भाव तो नहीं छिप रहे हैं।
आराध्यों और नैतिक मूल्यों को लोगों के बीच स्थापित किया
शेखर ने बताया कि Óगोस्वामी तुलसीदासÓ ने रामचरितमानस लिखने के साथ ही जनमानस में हमारे आराध्यों और नैतिक मूल्यों को स्थापित करने के लिए रामलीला की शुरुआत की थी। जिससे हर घर में रामलीला के सभी चरित्र आ गए। रामलीला ही ऐसा नाटक है जो 600 सालों से अनवरत जारी है। शुरुआत में रामलीला के नौ प्रसंगों को अलग-अलग स्थानों पर मंचित किया गया था जो आज संभव नहीं है।