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भोपाल

डीन समय पर लेतीं निर्णय तो रुक सकता था छात्रों का आंदोलन, रिपोर्ट में हुआ खुलासा

बीते साल जीएमसी में हुए छात्र आंदोलन की जांच कर रही कमेटी की रिपोर्ट, कहा डीन ने नहीं उठाए सकारात्मक कदम

भोपालJan 28, 2020 / 09:28 am

सुनील मिश्रा

शिक्षक आंदोलन प्रतीकात्मक फोटो

शिक्षक आंदोलन प्रतीकात्मक फोटो

बीते साल गांधी मेडिकल कॉलेज के गल्र्स हॉस्टल में जूनियर डॉक्टर के रूम में चोरी और उससे बदसलूकी के नाराज छात्रों ने एक सप्ताह तक आक्रामक आंदोलन किया था। इस दौरान कॉलेज के जूनियर डॉक्टरों ने अस्पताल में काम नहीं किया। इसका असर यह हुआ कि जहां सैकड़ों मरीजों की हालत गंभीर हो गई वहीं 250 से ज्यादा ऑपरेशन को टालना पड़ा था।

हालांकि कॉलेज की डीन डॉ. अरुणा कुमार समय पर सकारात्मक कदम उठाती तो इस आंदोलन को रोका जा सकता था। डीन के लचर प्रबंधन के चलते हजारों मरीजों को परेशानी उठानी पड़ी। यह खुलासा पूरे मामले की जांच कर रही कमेटी की आरटीआई से मिली रिपोर्ट से हुआ है। रिपोर्ट में जांच कमेटी ने आंदोलन के लिए तात्कालीन डीन को ही जिम्मेदार माना है।

घटना के पांच घंटे बाद पहुंची कॉलेज

रिपोर्ट के मुताबिक गल्र्स हॉस्टल में जूनियर डॉक्टर के साथ हुई बदसलूकी के बाद अन्य जूनियर डॉक्टरों ने डीन अरुणा कुमार को सुबह करीब पांच बजे जानकारी दी। इसके बावजूद ने सुबह 11 बजे कॉलेज पहुंची। रिपोर्ट में जूनियर डॉक्टरों के बयानों का हवाला देते हुए कहा गया है कि जब छात्र डीन ऑफिस में शिकायत करने पहुंचे तो उन्होंने वहां भी छात्रों की बात नहीं सुनी।

डीन को देना पड़ा था इस्तीफा

मालूम हो कि करीब एक सप्ताह तक चले इस आंदोलन में छात्र डीन के इस्तीफे पर ही अड़े रहे। उस दौरान डीन और छात्रों के बीच नोंकझोंक भी चलती रही। शासन भी हटाने के बारे में फैसला नहीं ले पा रहा था। लेकिन लगातार दवाब के बाद डीन डॉ. कुमार ने इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद डॉ टीएन दुबे को प्रभारी डीन बनाया गया था। उन्हें हाल ही में मेडिकल विवि का कुलपति बनाया गया है। गांधी मेडिकल कॉलेज को स्थायी डीन नहीं मिल पा रहा है। यही हाल अन्य कई मेडिकल कॉलेजों के भी हैं।

 

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