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भोपाल

जिस विभाग की जमीन उसे ही नहीं पता कौन लोग कर रहे कारोबार

कलियासोत डैम में व्यावसायिक गतिविधियों का मामला, मत्स्य पालन और मड कार रैली जैसी गतिविधियां घेरे में…

भोपालFeb 15, 2019 / 08:50 am

दिनेश भदौरिया

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जिस विभाग की जमीन उसे ही नहीं पता कौन लोग कर रहे कारोबार

भोपाल. कलियासोत डैम और उसमें रह रहे दुर्लभ व लुप्तप्राय घडिय़ाल, कछुए और मगरमच्छ आदि वन्यजीवों को बचाने की सुध किसी विभाग को नहीं थी। वर्षों से यहां मत्स्य आखेट चलता रहा, मड कार रैलियां और अन्य आयोजन धूम-धड़ाके से किए जाते रहे, लेकिन किसी के कान पर जूं नहीं रेंगी। इस बार घडिय़ाल के शिकार की बात सामने आई तो मामला गरमाया, तब जाकर इस मामले की परतें खुलनी शुरू हुईं।

पशुपालन विभाग की इस क्षेत्र में 499 एकड़ जमीन थी। इस जमीन में से 299 एकड़ जमीन पशुपालन विभाग से कलियासोत बांध के लिए जल संसाधन विभाग के पास आ गई, जिसमें से 274 एकड़ क्षेत्र में अभी बांध बताया जा रहा है। करीब 25 एकड़ जमीन कहां, किसके पास है, यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है।
कलियासोत डैम की निगरानी के लिए जल संसाधन विभाग के सब इंजीनियर यूसुफजई और स्टाफ तैनात रहता है, इसके बाद भी वहां की जा रहीं तमाम गतिविधियों को न रोका जाता है और न ही कोई एक्शन बाद में लिया जाता है। इस बार मड कार रैली का मामला पत्रिका एक्सपोज द्वारा प्रमुखता से उठाए जाने पर जल संसाधन विभाग, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नोटिस भेजकर इतिश्री कर ली। सूत्रों की मानें तो जल संसाधन विभाग का एक अधिकारी यहां वर्षों से तैनात है।
बीच में एक बार ट्रांसफर के बाद फिर से यहीं तैनाती करवा ली। यह भी बताया गया कि डैम में रात को मत्स्य आखेट के साथ अन्य वन्यजीवों के शिकार उनकी शह के बिना नहीं होते थे। उनकी मिलीभगत रहती थी। इसकी जांच होनी चाहिए। इस डैम में मड कार रैलियों में हजारों की भीड़ जुड़ती रही है, फिर कैसे जल संसाधन विभाग के अधिकारी खुद को अनजान बता रहे हैं? जल अधिनियम 1974 के प्रावधानों की इस डैम में धज्जियां उड़ाई जाती रही हैं। इसकी जांच कर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।
मुफ्त में मिले वन्यजीवों की कद्र नहीं
लुप्तप्राय घडिय़ाल और कछुओं को बचाने के लिए नेशनल चंबल सेंक्चुरी प्रोजेक्ट और कुकरैल घडिय़ाल प्रजनन केन्द्र जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाएं संचालित की जा रही हैं। इनपर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। कलियासोत डैम में ये वन्यजीव अच्छी तादात में होते हुए भी इनकी कद्र नहीं की जा रही है। ये वन्यजीव प्राकृतिक रूप से तो यहां हैं ही, वन विभाग ने भी अन्य स्थानों से रेस्क्यू करने के बाद इन जीवों को इस डैम में छोड़ा है। वन विभाग के अधिकारियों ने इनकी गणना कराने की जरूरत भी नहीं समझी, जिसके चलते यह पता चलना मुश्किल हो रहा है कि इस समय कितने घडिय़ाल यहां बचे हैं और कितने यहां से साफ कर दिए गए। वन विभाग के सूत्रों का कहना है कि इन्हें संरक्षित नहीं किया गया तो तस्कर
बयानों के भंवर
मत्स्य आखेट के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं दी गई। घडिय़ाल की सूचना हमें वन विभाग ने दी थी और उन्होंने जो भी मदद या सूचना चाही, वह हमने उपलब्ध कराई। मड कार रैली के आयोजकों को इस बार नोटिस दिए और डैम में कार रेसिंग करने वालों को भी समझाते रहते हैं। मैं अधिक बात नहीं कर पाऊंगा, अधिक जानकारी एसडीओ आरके जैन से पता कर लें।
– यूसुफजई, इंजार्च-कलियासोत डैम, जल संसाधन विभाग
कलियासोत डैम जल संसाधन विभाग का है, लेकिन मत्स्य पालन और आखेट के ठेके के बारे में हमें कभी कोई जानकारी नहीं दी गई। नगर निगम या जिला पंचायत किसी विभाग ने इस बारे में हमें नहीं बताया। इस बारे में किसी भी स्तर से जानकारी नहीं दी गई।
– आरके जैन, एसडीओ, जल संसाधन विभाग
कलियासोत डैम का झील संरक्षण प्रकोष्ठ से कोई लेना-देना नहीं है। यह हमारे पास नहीं था। ठेेके के बारे में उपायुक्त, राजस्व शाखा से बात कर लें। इस बारे में वही अधिक जानकारी दे सकेंगे कि ठेका किन नियम-शर्तों पर दिया गया।
– संतोष गुप्ता, प्रभारी झील व तालाब संरक्षण, नगर निगम
कलेक्टर के आदेश से ही तालाब को नगर निगम के सुपुर्द किया गया था, जिसे बाद में निगम ने मत्स्य पालन व आखेट के लिए ठेके पर दस वर्ष के लिए दिया था। कलेक्टर के ही आदेश के बाद दिसंबर 2018 में यह तालाब फिर से जिला पंचायत को सौंप दिया गया।
– विनोद शुक्ला, उपायुक्त-राजस्व, नगर निगम
घडिय़ाल के बारे में प्रकरण पंजीबद्ध किया गया है। जांच की जा रही है। जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। यहां अच्छी तादात में घडिय़ाल, मगरमच्छ और कछुए हैं, जिनके बारे में समाचार प्रकाशित होते रहते हैं, इसके बारे में सभी को पता है। इन लुप्तप्राय वन्यजीवों को संरक्षित करने के लिए संबंधित विभागों के अधिकारियों की संयुक्त बैठक कर निर्णय लिया जाएगा।
– हरिशंकर मिश्रा, डीएफओ

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