दो बेटे भगवतीशरण और जगदंबिका शरण मानसिक रोगी हैं। इनके पिता दयाराम प्रजापति शासन की विकलांगों के लिए संचालित कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए पांच साल तक दर-दर भटकते रहे। अंत में थक हारकर वे इस दुनिया को ही अलविदा कह गए, लेकिन दोनों बच्चों को किसी योजना का लाभ नहीं दिला सके।
पांच साल पहले पिता का साया छिनने के बाद इनकी जिम्मेदारी का भार बूड़ी मां के कंधों पर आ गया। मां दिव्यांग बेटों को लेकर दफ्तर दर दफ्तर भटक रही है, लेकिन अधिकारी उन्हें यह कहकर लौटा देते हैं कि आपके बच्चे 14 साल से ज्यादा के हो गए हैं, इसलिए उन्हें किसी योजना का लाभ नहीं मिल सकता। बच्चों की हालत इस तरह है कि उन्हे कुछ देर के लिए छोडऩे पर कुछ भी करने लगते हैं, जिससे पीडि़त मां अपने बच्चों को घर में ही बांधकर रखती है।
मां की गुहार
दिव्यांग बच्चों की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि बच्चों के पिता का 5 साल पहले मौत हो चुकी है। मेरे बाद इन बच्चों की देखभाल कौन करेगा। इतने बड़े देश में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, जहां ऐसे बच्चों को रखा जा सके। मां कहती है कि शासन की योजनाओं का लाभ उन्हें मिल नहीं रहा है और कोई भी सामाजिक संगठन भी उनकी मदद के लिए आगे नहीं आ रहे हैं।
पेंशन योजना का ले सकते हैं लाभ
दिव्यांगों के लिए अलग अलग तरह की दस बारह योजनाएं हैं। इनमें से एक पेंशन योजना भी है। इसके लिए नगरीय क्षेत्र में सीएमओ से संपर्क कर लाभ लिया जा सकता है। 6 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों और लोगों को 500 रुपए तक पेंशन दिए जाने का प्रावधान है।
पंकज जैन, उपसंचालक सामाजिक न्याय विभाग, रायसेन