किसानों को लगता है कि जब फसल कमजोर पैदा होती है तो उसे नुकसान उठाना पड़ता है और जब बंपर पैदावार होती है तो भी नुकसान उसको ही है।
– फसल का उचित मूल्य नहीं मिलता, लागत भी नहीं निकाल पाते किसान
– प्याज का बंपर उत्पादन हुआ तो कीमतें एक रुपए किलो पर पहुंच गईं।
– बंपर उत्पादन में सड़क पर फेंकने पड़ी प्याज और टमाटर
– मंडी में लगती हैँ लंबी-लंबी कतारें, अनाज बेचने में तीन से चार दिन तक लग जाते हैं।
– नगद भुगतान न मिलने से भी किसान बहुत परेशान हुए, बैंक से पैसे मिलने में १५-२० दिन लगते हैं।
– जीएसटी लगने के बाद कीमतों में अंतर आ गया।
– लागत लगातार बढ़ती जा रही है।
– पानी और सिंचाई सुविधाओं की कमी।
– समय पर खाद और बीज का न मिलना।
– मजदूरों की कमी।
– लगातार गिरता उत्पादन
– जंगली जानवर और प्राकृतिक आपदा से नुकसान
– पर्याप्त बिजली का न मिलना
– भंडारण की समस्या
– फसल बीमा की पॉलिसी से संतुष्ट नहीं
– समय पर न्यूनतम समर्थन मूल्य तय होना चाहिए।
– फसल का लागत मूल्य नहीं लाभकारी मूल्य मिलना चाहिए।
– आलू जैसी सब्जियों के लिए सब्सिडी पर कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था
– फूड प्रोसेसिंग प्लांट और फसल भंडारण की निशुल्क व्यवस्था
– फसलों का नगद भुगतान
– बिजली बिलों की माफी
– फर्टीलाइजर पर कैश सब्सिडी
इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि किसानों का असंतोष उनके आंदोलन की वजह बनता है। मंदसौर कांड भी किसानों की परेशानी की वजह से हुआ। किसानों ने कर्ज माफी और फसल के उचित मूल्य की मांग को लेकर ही आंदोलन छेड़ा था। सोशल मीडिया के कारण ये आंदोलन प्रदेश में फैल गया। आंदोलन इतना बढ़ा कि ये बाद में हिंसक हो गया और पुलिस फायरिंग में कुछ किसानों की मौत भी हो गया।
सुशासन संस्थान ने प्राइस पॉलिसी बनाने की सिफारिश की है जिसमें किसानों को लागत से ज्यादा मूल्य मिल सके। फसल बीमा पॉलिसी ऐसी होनी चाहिए जिसमें किसानों का जोखिम पूरी तरह कवर हो सके। फसल खरीदने की जगह-जगह व्यवस्था होनी चाहिए ताकि किसानों को मंडी तक न जाना पड़े।