नगर निगम दावा तो करता है कि कचरा इस तरह उठाया और खंती तक पहुंचाया जाता है कि जमीन से भी टच नहीं करता, लेकिन असलियत में अधिकांश कचरा उठाया ही नहीं जाता और अस्थाई खंतियों/कलेक्शन सेंटर पर ही जला दिया जाता है।
शहर में आवासीय इलाकों और हॉस्पिटल्स के पास भी कचरा जलाया जा रहा है, जिससे रहवासियों और मरीजों को तकलीफ हो रही है। शहर के आवासीय क्षेत्रों में 12 से ज्यादा कचरा कलेक्शन सेंटर हैं। कोलार क्षेत्र के जेके हॉस्पिटल, साकेत में एम्स के अलावा सुल्तानिया अस्पताल, इंदिरा गांधी अस्पताल, पल्मोनरी अस्पताल के आसपास कचरा डाला जाता है। इसके अलावा 12 निजी अस्पतालों के आसपास भी कचरा डंपिंग यार्ड हैं।
इन अस्पतालों में रोजाना दस हजार से अधिक मरीज पहुंचते हैं, जो इस कचरे की वजह से गंभीर संक्रमण का शिकार हो जाते हैं। स्वास्थ्य विभाग के नियमों के अनुसार अस्पताल परिसर के 500 मीटर इलाके में किसी भी प्रकार का संक्रमण नहीं होना चाहिए। अस्पताल के आसपास छोटी बड़ी फैक्ट्रियां, कचरा डंपिंग यार्ड, स्लॉटर हाउस या कचरा जलाने जैसी गतिविधियां भी प्रतिबंधित हैं।
ये है धरातल की हकीकत
शहर में रोजाना करीब 850 मीट्रिक टन कचरा निकलता है। निगम इसमें से महज 250 मीट्रिक टन कचरा ही उठाता है। बाकी 600 मीट्रिक टन कचरा सडक़ों, गली-मोहल्लों के साथ ही अस्थाई कचरा खंतियों में डंप रहता है। खंतियों में जैसे ही कचरा बढ़ता है, निगम कर्मचारी आग लगा देते हैं, ताकि वह कम हो जाए।
स्वास्थ्य के लिए घातक
श्वांस रोग विशेषज्ञ डॉ. पीएन अग्रवाल का कहना है कि कचरा जलाने से कार्बन डाई ऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें निकलती हैं। हवा में पार्टिकुलेट मैटर (जहरीले कण) की मात्रा बढ़ जाती है, जो फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है। नवजात और गर्भवती महिलाओं के लिए यह ज्यादा घातक है।
कचरा जलाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और हॉस्पिटल के पास कचरा जलाना तो अत्यंत चिंताजनक है। अधिकारियों को वहां से तुरंत कचरा ट्रांसफर स्टेशन भी हटाना चाहिए।
– शेखर दुबे, समाजसेवी, मंदाकिनी कॉलोनी
जेके हॉस्पिटल के पास ट्रांसफर स्टेशन पर कचरा जलाने के मामले का निस्तारण करवा दिया गया था। कचरा उचित तरीके से निष्पादित करने के निर्देश कर्मचारियों को दिए गए हैं। कचरा जलाने वाले कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
– हरीश गुप्ता, उपायुक्त, नगर निगम