दल ने जम्मू और कश्मीर की लोक कलाओं से दर्शकों को रू-ब-रू कराया। शुरुआत जम्मू के डोगरा समुदाय के लोकनृत्य डोगरी से की। ये नृत्य लोहड़ी, होली और शादी पर किया जाता है। महिला-पुरुष मंदिर में एकत्रित होकर ईश्वर की आरधना कर नृत्य की शुरुआत करते हैं। कलाकारों ने बचनगमा नृत्य की प्रस्तुति दी। ये कश्मीर का करीब 500 साल पुराना लोकनृत्य है। कलाकार रूबीना अख्तर ने बताया कि इस नृत्य को केवल पुरुष कलाकारों को ही करने की इजाजत है, क्योंकि कश्मीर में शादी से एक रात पहले संगीत का आयोजन किया जाता है। इसमें पुरुष अपने होने वाली पत्नी के लिए अपनी भावनाओं का इजहार करता है।
दूल्हा पारंपरिक वेशभूषा में देर रात तक नृत्य करता है। संगीत सभा में बैठी महिलाएं उसके साथ गाती और नृत्य कर सकती है। प्रस्तुति के दौरान कलाकार ने ह गुलो त्वहे मसा वुनवुन यार म्योन(ये लड़की आवाज देती है गुलाबों को, आपने मेरे यार को कहीं देखा है क्या)… गीत पर नृत्य पेश किया। इस नृत्य में कलाकार महिला की ड्रेस में विभिन्न करतब दिखाए। अगली कड़ी में कलाकारों ने रूफ नृत्य पेश किया। मुख्य रूप में रहने वाली मुस्लिम समाज की महिलाएं ईद के मौके पर ये नृत्य करती है। इसे घर में बने दालान में किया जाता है। महिलाएं रंगीन वेशभूषा में आकर दो पंक्तियों में एक-दूसरे के सामने खड़ी होकर नृत्य करती है। इसमें मुख्य रूप से पैरों का उपयोग होता है जिसे स्थानीय भाषा में चकरी कहा जाता है। ईद आए रस-रस, ईद का वसवई(आहिस्ता-आहिस्ता ईद आ गई है, हम ईदगाह चलते हैं)… पर नृत्य पेश किया। इस में हारमोनियम, कश्मीरी रबाब, सारंगी, मटका, तुम्बकनारी(ढोलक) पर संगीत दिया गया। रबाब काबुल में बना वाद्ययंत्र है।