फिर अपनों को साधने की जुगत मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसरों की भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी और अपनों की नियुक्ति के आरोप के बाद फिर यही बातें होने लगी है। दरअसल सबसे ज्यादा रार विज्ञापन में निर्हता कॉलम को लेकर है। दरअसल इंदौर डीन के लिए जो नियम जारी किए गए हैं उसके मुताबिक जिन आवेदकों पर लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू की जांच चल रही हो वो आवेदन नहीं कर सकते, लेकिन भोपाल में यह नियम हटा दिया गया है। जानकारों का कहना है कि गांधी मेडिकल कॉलेज में एक आवेदक इसके दायरे में आते हैं उन्हीं को फायदा देने के लिए यह नियम बदला गया है।
अधिकारियों की पसंद होगी प्राथमिकता
अस्पताल से जुड़े लोगों का कहना है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग के एक तेजतर्रार अधिकारी की पसंद के अभ्यर्थी ही डीन बनेगा। दसअसल कॉलेज में चर्चा है कि इन अधिकारी की नजर में सुल्तानिया अस्पताल की एक वरिष्ठ महिला चिकित्सक सबसे उपयुक्त हैं। इनका मानना है कि जब वह सुल्तानिया अस्पताल को बेहतर तरीके से चला सकती हैं तो कॉलेज को क्यों नहीं चला पांएगी।
इन बिदुओं पर है विरोध – आवेदन के लिए ऑटोनोमस डॉक्टरों को भी बुलाना, जबकि 1987 रूल्स एंड रेग्युलेशन के के मुताबिक सिर्फ पीएससी चयनित चिकित्सक ही डीन बन सकते हैं।
– डीन पद वरिष्ठता के हिसाब से होता है लेकिन यहां प्रोफेसरों के साथ सहायक प्रोफेसरों को भी आवेदन करने की छूट दी गई है।
– एमसीआई के नियमों में एडमिनिस्ट्रेटिव क्वालिटी, सुपरीटेंडेंट होना, हॉस्पिटल मैनेजमेंट सर्टीफिकेट जैसे शब्द नहीं थे जो अब जोड़ दिए गए हैं।