भोपाल

Ganesh Chaturthi 2018: इस मंदिर में उल्टा स्वास्तिक बनाने पर होती है मन्नत पूरी

Ganesh Chaturthi 2018: इस मंदिर में उल्टा स्वास्तिक बनाने पर होती है मन्नत पूरी

भोपालSep 13, 2018 / 04:17 pm

Manish Gite

Ganesh Chaturthi 2018: इस मंदिर में उल्टा स्वास्तिक बनाने पर होती है मन्नत पूरी

 

भोपाल। मध्यप्रदेश में भगवान गणेश का अनोखा मंदिर है, देश के कई प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है यह मंदिर। चिंतामन गणेश मंदिर के नाम से प्रसिद्ध यह स्थान भक्तों की अटूट आस्था का केंद्र है। खास बात यह है कि देश के चार स्वयंभू प्रतिमाओं में से एक है यह प्रतिमा। इनके अलावा राजस्थान के रणथंभौर सवाई माधोपुर, अवंतिका उज्जैन के चिंतामन गणेश, गुजरात के सिद्धपुर और चौथा मध्यप्रदेश का चिंतामन गणेश मंदिर में विराजे हैं।


मध्यप्रदेश की राजधानी से लगे सीहोर जिले में है चिंतामन गणेश मंदिर। यह लोगों की इतनी आस्था केंद्र है कि अन्य राज्यों के लोग भी यहां दर्शन करने आते हैं और अपनी झोली भरकर ले जाते हैं।

 

उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं लोग
प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक यहां आने वाले लोग भगवान गणेश के मंदिर के पीछे उल्टा स्वास्तिक बनाकर मन्नत मांगते हैं। इसके बाद जब मन्नत पूरी हो जाती है तो सीधा स्वास्तिक बनाने जरूर आते हैं।

 

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हर पल अलग दिखता है रूप
मंदिर में स्थापित गणएश प्रतिमा के स्वरूप के बारे में बताया जाता है कि भगवान का नित्य नया रूप देखने को मिलता है। श्रृंगार भी बदलता रहता है। जब एक व्यक्ति जब अलग-अलग समय में दर्शन करता है तो उसे भगवान का रूप ही अलग नजर आता है।

इस नदी के कमल पुष्प से बने चिंतामन
प्राचीन चिंतामन सिद्ध गणेश को लेकर पौराणिक इतिहास बताया जाता है। करीब दो हजार वर्ष पुराना इसका इतिहास है। मान्यता है कि सम्राट विक्रमादित्य सीवन नदी से कमल पुष्प के रूप में प्रकट हुए भगवान गणेश को रथ में लेकर जा रहे थे। सुबह होने पर रथ जमीन में धंस गया। रथ में रखा कमल पुष्प गणेश प्रतिमा में परिवर्तित होने लगा। प्रतिमा जमीन में धंसने लगी। बाद में इसी स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया दिया गया। आज भी यह प्रतिमा मंदिर के भीतर भी आधी जमीन में धंसी हुई है।

 

क्या कहते हैं इतिहासकार
इतिहासकारों के मुताबिक इस मंदिर का जीर्णोद्धार और सभा मंडप बाजीराव पेशवा प्रथम ने बनवाया था। शालीवाहन शक, राजा भोज, कृष्ण राय तथा गौंड राजा नवल शाह आदि ने मंदिर की व्यवस्था में सहयोग दिया था। नानाजी पेशवा विठूर के समय मंदिर की ख्याति व प्रतिष्ठा दुनियाभर में फैल गई थी।

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