देश के 25 राज्यों से आए जल और पर्यावरण से जुड़े समाजसेवियों, विशेषज्ञों से आग्रह किया कि 10-20 साल जो संभव नहीं था, अब सब संभव है। इसलिए हमें नई तकनीकी पर भी विमर्श करना चाहिए। पानी बचाने, जल स्त्रोतों को संरक्षित करने का काम सबसे पहले करना होगा। पर्यावरण विद और जल संरक्षण के क्षेत्र में समर्पित भाव से काम करने वाले स्वयंसेवियों को इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाना होगी।
कार्यक्रम में पीएचई मंत्री सुखदेव पांसे बताया कि पांच सालों में प्रदेश के प्रत्येक घर में नल के माध्यम से 55 लीटर प्रति व्यक्ति शुद्ध एवं स्वच्छ जल पहुंचाने का लक्ष्य है। राइट टू वाटर से यह संभव हो सकेगा। पांसे ने कहा कि वर्षा की एक – एक बूंद को सहेजने से लेकर उसे घर तक पहुँचाने के प्रत्येक पहलू का समावेश जल अधिकार कानून में रहेगा। पानी की रिसायक्लिंग, वाटर रिचार्जिंग, उसका वितरण एवं उपयोग भी इस कानून के दायरे में आयेगा।
उन्होने बताया कि वर्तमान में प्रदेश की 72 प्रतिशत आबादी, 55000 गाँवों की 01 लाख 28 हजार बसाहटों में निवास करती है। गाँवों की 98 प्रतिशत पेयजल व्यवस्था भू-जल पर आधारित है। इसीलिये गिरता हुआ भू-जल स्तर प्रतिवर्ष जल संकट को बढ़ा रहा है।
पानी ही है चुनावी राजनीति में आने का मूल कारण –
कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री ने खुलासा किया कि उनके चुनावी राजनीति में आने का मूल कारण पानी ही है। वर्ष 1979 में छिंदवाड़ा की एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि वे सौंसर से पाडुंर्णा जा रहे थे। रास्ते में मिले ग्रामीणों ने बताया कि लोगों को 12 किमी दूर से पानी लाना पड़ता है। इस कारण हमारे गांव के लड़कों के विवाह नहीं हो रहे है। क्योंकि लड़की वाले कहते है हमारी बेटी इतने दूर से पानी नहीं लाएगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि उसी दिन मैंने तय किया था कि चुनावी राजनीति के जरिए लोगों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाउंगा। अब छिंदवाड़ा की स्थिति सभी के सामने है।