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भोपाल

हमीदिया में दो साल से जहर की जांच बंद, अंदाजे से हो रहा इलाज

लैब होती तो सुलझ जाती छात्रा के मौत की गुत्थी्र

भोपालJan 09, 2019 / 01:52 am

Ram kailash napit

Hamidia Hospital

hamidia hospital

भोपाल. एक निजी स्कूल की आठ साल की छात्रा की मौत की गुत्थी सुलझने में लंबा वक्त लगेगा है। मौत की वजह जानने के लिए बच्ची का बिसरा सागर भेजा गया है जहां से रिपोर्ट आने में एक साल से ज्यादा समय लगेगा। हमीदिया अस्पताल में भी यह जांच हो सकती थी लेकिन टॉक्सिकोलॉजी लैब दो साल से लैब बंद पड़ी हुई है। हमीदिया अस्पताल में अगर कोई मरीज जहर खाकर पहुंचा है तो डॉक्टर उसका सटीक इलाज करने की बजाय सिर्फ अंदाजा ही लगाते हैं। यही नहीं अगर इस मरीज की मौत हो जाए तो पोस्ट मार्टम रिपोर्ट भी बिना जहर की जांच के ही बनती है।
दरअसल हमीदिया अस्पताल के एकमात्र टॉक्सिक एक्सपर्ट डॉ. विमल शर्मा दो साल पहले रिटायर हो चुके हैं। इसके बाद विभाग ने इस पद पर नियुक्ति ही नहीं की। गौरतलब है कि हमीदिया अस्पताल में जहर खुरानी के हर रोज दो से तीन मामले पहुंचते हैं। वहीं सप्ताह में दो तीन लोगों की मौत जहर खाने से होती है। बता दें कि प्रदेश के किसी भी मेडिकल कॉलेज में यह पहली लैब है, जहां जहर की जांच सुविधा है।

10 लाख रुपए से 2009 में हुई थी तैयार
इस लैब का निर्माण 2009 में किया गया था। इसके लिए 10 लाख रुपए के पॉलीमर चेन रिएक्शन (पीसीआर) व अन्य उपकरण खरीदे गए। लेकिन एक्सपर्ट डॉ. विमल शर्मा के रिटायर होने के बाद यह लैब बंद पड़ी है। इस लैब का सबसे बड़ा फायदा यह है कि जहर की फ ौरन जांच कर मरीज को सटीक उपचार दिया जा सकता है।
जांच के लिए सागर भेजते हैं सैम्पल
मामले में मेडिको लीगल संस्थान के डायरेक्टर डॉक्टर अशोक शर्मा बताते हैं कि टॉक्सिकोलॉजी लैब नहीं होने से पीएम रिपोर्ट में दिक्कत तो आती है। ऐसे मामलों में हमारे पास बिसरा जांच के लिए सागर लैब भेजने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। यहां जांच हो तो एक दिन में रिपोर्ट मिल जाए।
लक्षण देखकर करते हैं इलाज
सबसे बड़ी दिक्कत जहर खाए मरीज के उपचार में होती है। हमीदिया अस्पताल के मेडिसिन विभाग के एचओडी डॉ. टीएन दुबे के मुताबिक हर जहर का इलाज अलग होगा है। ऐसे में जांच के बाद जहर का पता चलने पर इलाज करना आसान हो जाता है। लेकिन जांच नहीं होने पर मरीज के लक्षण के आधार पर इलाज करना पड़ता है।
जानलेवा हो सकता है अंदाजे का इलाज
विशेषज्ञों के मुताबिक जहर हीमोटॉक्सिक और न्यूरोटॉक्सिक होते हैं। दोनों तरह के जहर में इलाज एक दूसरे से भिन्न होता है। जहर का इलाज भी जहर से ही होता है, ऐसे में गलत इलाज मरीजों की जान भी ले सकता है।
ये होती हैं जांचें
– सांप काटने का जहर
– किसी तरह का केमिकल
– दवा का ओवरडोज
– किसी अन्य कीड़े काटने से फैला जहर
-आत्महत्या के लिए इस्तेमाल जहर

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