वर्ष 2009 में यहां टॉक्सिकोलॉजी लैब बनार्ग गई थी। इसका उद्देश्य मौत के कारणों में जहर की पहचान करना था। इसके लिए करीब दस लाख रुपए की मशीनें खरीदी गई थीं। लैब में एकमात्र विशेषज्ञ डॉ. विमल शर्मा थे, लेकिन वे दो साल पहले सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इसके बाद किसी और की नियुक्ति नहीं की गई। नतीजतन यहां जहर संबंधी जांच पूरी तरह बंद है। विभाग लंबे समय से डॉ. शर्मा को संविदा पर रखने की मांग कर रहा है।
दो मेडिकल ऑफिसर्स के जिम्मे सभी जांचें
यहां टॉक्सिकोलॉजी, एंथ्रोपोलाजी, एंटोमोलॉजी, हिस्टोपैथोलॉजी, डीएनए तथा डॉयटम टेस्ट से संबंधित लैब हैं। इसके अतिरिक्त अपराध की पूर्ण रचना एवं अनुसंधात्मक विश्लेषण भी किया जाता है। संस्था में मेडिकोलीगल प्रकरणों में विशिष्ट मत देना, शव परीक्षण करना, अप्राकृतिक तथा संदिग्ध मौत के कारणों का पता लगाना जैसे काम होते हैं। इसके अलावा कोर्ट में गवाही के काम भी करना होते हैं। यह सभी काम दो मेडिकल ऑफिसर्स के भरोसे हैं।
खाली पद भरने लिखा है पत्र
&इंस्टीट्यूट में कई पद खाली हैं। इस संबंध में विभाग को पत्र लिखकर पद भरने के लिए कहा है। अगर किसी दिन ज्यादा केस आते हैं तो हमें दिक्कत का सामना करना पड़ता है। कैबिनेट में चतुर्थ श्रेणी के पदों को भरने के निर्णय हुए हैं, जबकि यहां सबसे अधिक जरूरत डॉक्टरों की है।
डॉ. अशोक शर्मा,
प्रभारी संचालक, मेडिकोलीगल इंस्टीट्यूट