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भोपाल

Navratri 2021: यहां उलटे फेरे लगाने पर पूरी होती है श्रद्धालुओं की मनोकामना

भोपाल से करीब 35 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम तरावली में है। जहां नवरात्रि में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है।

भोपालOct 10, 2021 / 04:35 pm

Subodh Tripathi

Harsiddhi Tarawali Mata Mandir Bhopal

Harsiddhi Tarawali Mata Mandir Bhopal

भोपाल. मध्यप्रदेश में माता का ऐसा अनूठा दरबार है, जहां सीधे नहीं बल्कि उलटे फेरे लगाने पर मनोकामना पूरी होती है। यह माता का दरबार राजधानी भोपाल से करीब 35 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम तरावली में है। जहां नवरात्रि में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। मान्यता है कि यहां जो भी व्यक्ति किसी कामना को लेकर अर्जी लगाता है वह जरूर पूरी होती है।

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हरसिद्धि के नाम से प्रसिद्ध हैं माता
तरावली स्थित मां का धाम हरसिद्धि के नाम से देशभर में प्रसिद्ध है। बताया जाता है कि साधरण रूप से श्रद्धालु यहां भी सीधी परिक्रमा लगाते हैं, लेकिन जिनकी कोई विशेष कामना होती है वे उलटी परिक्रमा लगाकर माता के दरबार में अर्जी लगाते हैं। इसके बाद जब उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है, तब श्रद्धालु माता के दरबार में पहुंचकर सीधी परिक्रमा लगाते हैं।

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संतान की कामना को लेकर पहुंचते हैं श्रद्धालु


बताया जाता है कि जिन लोगों को कोई संतान नहीं होती है। वे संतान की कामना को लेकर माता के दरबार में पहुंचते हैं। यहां आने पर महिलाएं मंदिर के पीछे स्थित नदी में स्नान करने के बाद मां की आराधना कर संतान की कामना करते हैं। माता उनकी मनोकामना पूरी करती हैं।

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राजा विक्रमादित्य ने की आराधना


बताया जाता है कि सालों पूर्व जब राजा विक्रमादित्य उज्जैन के शासक थे। उस समय वे काशी गए थे। वहां उन्होंने मां की आराधना कर उज्जैन चलने के लिए तैयार किया था। इस पर मां ने कहा था कि वह उनके चरणों को यहां पर छोड़कर चलेंगी। साथ ही जहां सबेरा हो जाएगा। वे वहीं विराजमान हो जाएंगी। इसी दौरान जब वह काशी से चले तो तरावली स्थित जंगल में सुबह हो गई। इस कारण माता तरावली में ही विराजमान हो गई। तो राजा विक्रमादित्य ने लंबे समय तक तरावली में ही मां की आराधना की। लेकिन फिर जब मां प्रसन्न हुई तो वे केवल शिश के साथ चलने तैयार हुई। इस कारण माता के चरण काशी, धड़ तरावली और शिश उज्जैन में हंै। कहा जाता है कि उस समय विक्रमादित्य को स्नान के लिए जल की आवश्यकता हुई तो मां ने अपने हाथ से जलधारा दी थी। जिससे वाह्य नदी का उद्गम भी तरावली गांव से ही हुआ है।

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