बारिश के समय जब नाले उफान पर रहते हैं तो लोगों को डर लगता है। बावजूद इसके नालों के इन निर्माणों को खत्म कर रहवासियों-दुकानदारों को विस्थापित करने की बजाय हाउसिंग बोर्ड नाले पर बनी दुकानों की री-सेलिंग कर रहा है। उसने इसके लिए बाकायदा प्रक्रिया शुरू कर दी है। दरअसल, 1976 में शासन ने नालों को ढ़कने के निर्देश दिए थे।
इस निर्देश का ही गलत अर्थ निकाला। ढ़कने के नाम पर नालों पर सीमेंटेड स्लैब बिछा दी गई। इसपर दुकान और मकान बनाकर करोड़ों रुपए की कमाई कर ली। इस मामले में जिम्मेदारों पर कार्रवाई होना थी और निर्माण तोड़े जाने थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लगातार निर्माण होते रहे।
सभी सरकारी एजेंसियों के जिम्मेदारों पर कार्रवाई जरूरी
नगर निगम, हाउसिंग बोर्ड, बीडीए जैसी सरकारी एजेंसियों ने इनके निर्माण के लिए टीएंडसीपी से ले-आउट मंजूर कराया। नाले पर इंजीनियरों ने निर्माण की डिजाइन तैयार की। दुकान और मकान आवंटन के लिए लॉटरी से हितग्राही निकाले गए और आवंटन के बाद इनकी रजिस्ट्री कर दी गई। ऐसे में सभी संबंधित विभागों के अफसर और इंजीनियर इस घालमेल में बराबर के जिम्मेदार हैं।
नालों पर सरकारी निर्माण, इन सवालों का जवाब नहीं
– भोपाल मास्टर प्लान 2005 में नालों से निर्माण की दूरी अधिकतम 9 मीटर तय है तो फि र नाले पर ही ये निर्माण कैसे हो गए।
– नाला होने के बावजूद टीएंडसीपी ने ले- आउट मंजूर कैसे कर दिया।
– नालों की दीवारों पर बने मकान- दुकान की रजिस्ट्री करने के दौरान रजिस्ट्रार ने इनकी जमीन को लेकर सवाल क्यों खड़ा नहीं किया।
– सरकारी एजेंसी ने इस तरह के आवास बेचे हैं इसलिए लोगों ने इन्हें खरीदा, अब सवाल खड़े हो रहे हैं तो फि र विभाग खुद की पॉलिसी पर चर्चा क्यों नहीं करा रहे।
– संजय दुबे, प्रमुख सचिव आवास एवं विकास विभाग