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भोपाल

सरकार ने नालों को कवर करने का कहा था, हाउसिंग बोर्ड-बीडीए ने स्लैब बिछाकर मकान-दुकान बेच दी

– अब इन्हीं नालों की पुरानी दुकानों की री-सेलिंग की कोशिश की जा रही, जहां सरकारी एजेंसियों का नालों पर कब्जा, वहां 30 साल से नाले नहीं हो पाए साफ

भोपालDec 27, 2019 / 07:42 am

Ram kailash napit

Housing Board-BDA

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भोपाल. राजधानी में खुद सरकारी एजेंसियों ने नालों पर मकान-दुकान बनाकर बेचे हुए हैं। 12 नंबर से लेकर 1100 क्वार्टर, साईंबोर्ड और एमपी नगर तक आपको ये स्थिति मिल जाएगी। नाले पर स्लैब बिछाकर उसे प्लॉट की तरह उपयोग किया। लोगों ने भी सरकारी एजेंसी का निर्माण होने पर लोगों ने विश्वास किया और मकान-दुकान खरीद लिए। 33 साल बीत गए। करीब आधा किमी तक नाले साफ नहीं हो पा रहे। घर और दुकान के नीचे मलबा बह रहा है।

बारिश के समय जब नाले उफान पर रहते हैं तो लोगों को डर लगता है। बावजूद इसके नालों के इन निर्माणों को खत्म कर रहवासियों-दुकानदारों को विस्थापित करने की बजाय हाउसिंग बोर्ड नाले पर बनी दुकानों की री-सेलिंग कर रहा है। उसने इसके लिए बाकायदा प्रक्रिया शुरू कर दी है। दरअसल, 1976 में शासन ने नालों को ढ़कने के निर्देश दिए थे।

इस निर्देश का ही गलत अर्थ निकाला। ढ़कने के नाम पर नालों पर सीमेंटेड स्लैब बिछा दी गई। इसपर दुकान और मकान बनाकर करोड़ों रुपए की कमाई कर ली। इस मामले में जिम्मेदारों पर कार्रवाई होना थी और निर्माण तोड़े जाने थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लगातार निर्माण होते रहे।

सभी सरकारी एजेंसियों के जिम्मेदारों पर कार्रवाई जरूरी

नगर निगम, हाउसिंग बोर्ड, बीडीए जैसी सरकारी एजेंसियों ने इनके निर्माण के लिए टीएंडसीपी से ले-आउट मंजूर कराया। नाले पर इंजीनियरों ने निर्माण की डिजाइन तैयार की। दुकान और मकान आवंटन के लिए लॉटरी से हितग्राही निकाले गए और आवंटन के बाद इनकी रजिस्ट्री कर दी गई। ऐसे में सभी संबंधित विभागों के अफसर और इंजीनियर इस घालमेल में बराबर के जिम्मेदार हैं।

नालों पर सरकारी निर्माण, इन सवालों का जवाब नहीं

– भोपाल मास्टर प्लान 2005 में नालों से निर्माण की दूरी अधिकतम 9 मीटर तय है तो फि र नाले पर ही ये निर्माण कैसे हो गए।
– नाला होने के बावजूद टीएंडसीपी ने ले- आउट मंजूर कैसे कर दिया।

– नालों की दीवारों पर बने मकान- दुकान की रजिस्ट्री करने के दौरान रजिस्ट्रार ने इनकी जमीन को लेकर सवाल क्यों खड़ा नहीं किया।
– सरकारी एजेंसी ने इस तरह के आवास बेचे हैं इसलिए लोगों ने इन्हें खरीदा, अब सवाल खड़े हो रहे हैं तो फि र विभाग खुद की पॉलिसी पर चर्चा क्यों नहीं करा रहे।

1992 में पॉलिसी बनाकर रोका नाले पर निर्माण

बीडीए के पूर्व आर्किटेक्ट व प्लानर अवनीश सक्सेना का कहना है कि नाले जब जाम होने लगे तो मप्र शासन को 1992 में बकायदा एक पॉलिसी बनानी पड़ी। इसमें नाले पर निर्माण को प्रतिबंधित किया गया। महापौर आलोक शर्मा का कहना है कि मैंने शासन स्तर पर ये कहा कि उन अफ सर- इंजीनियरों को तलाशें, जिन्होंने नाले पर निर्माण कराया और दुकान- मकान की रजिस्ट्री करा दी। राजस्व के रेकॉर्ड में ये नाले हैं तो फि र इन पर निर्माण कैसे हो गया।

इस मामले में शिकायतें पहले भी आई हैं। संबंधितों के साथ हम इन मामलों के निराकरण की कवायद कर रहे हैं।
– संजय दुबे, प्रमुख सचिव आवास एवं विकास विभाग

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