दुर्लभ कछुओं के रेस्क्यू में कई नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट अजय दुबे ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन बल प्रमुख) और प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) को नोटिस भेजते हुए भोपाल डीएफओ एवं कछुओं की जान खतरे में डालने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की है। गौरतलब है कि पत्रिका ने मंगलवार को समाचार प्रकाशित कर तस्करी के मामले में लापरवाही का मुद्दा उठाया था।
11 अगस्त की रात भोपाल रेलवे स्टेशन पर जीआरपी को एक बैग में भरे 53 कछुए लावारिस हालत में मिले थे। जीआरपी ने इन कछुओं को वन विभाग को सौंप दिया। वन विभाग के अधिकारियों ने 13 अगस्त को सीजेएम कोर्ट में आवेदन पेश करके कछुओं को उनके प्राकृतिक रहवास में छोडऩे की अनुमति मांगी थी। कोर्ट ने कछुओं को उनके प्राकृतिक रहवास में छोडऩे की अनुमति दी थी।
ग्वालियर में है प्राकृतिक रहवास
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट अजय दुबे का कहना है कि लावारिस पाए गए कछुए दुर्लभ इंडियन रूफ एंड इंडियन रेंट टर्टल थे। इनका प्राकृतिक रहवास चम्बल वाइल्ड लाइफ सेंचुरी है, जहां इनके संरक्षण पर काम हो रहा है। कछुओं को लापरवाही पूर्वक कलियासोत डेम में छोडक़र इनके जीवन को खतरे में डाला गया है, जबकि वहां कछुआ ही नहीं था।
चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन से नहीं ली अनुमति
दुबे ने बताया कि दुर्लभ प्रजाति के कछुए शेड्यूल वन के संरक्षित प्राणी है, इनके रेसक्यू और कहीं भी छोड़े जाने से पहले प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) एवं चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन शाहबाज अहमद से अनुमति ली जानी चाहिए थी। लेकिन भोपाल मंडल के वन अधिकारियों ने न तो वहां से अनुमति ली न ही कछुओं की तस्करी की जांच कर रही एसटीएसएफ को ही जानकारी दी और खुद निर्णय ले लिया जो वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 39 का उल्लंघन है। अधिकारियों ने कंडक्ट रूल्स का भी उल्लंघन किया जिसके लिए भी इन पर कार्रवाई होनी चाहिए।