शहर में चलने वाली प्लास्टिक प्रोडक्शन यूनिटों में नॉनवुवेन मशीनों के जरिए इनकी कटिंग कर छोटे-बड़े साइज के कैरीबैग तैयार हो रहे हैं। मप्र प्लास्टिक एसोसिएशन ने इस मामले में स्थानीय व्यापारियों को इस तरह के मटेरियल के क्रय-विक्रय से बचने की हिदायत भी दी है। एसोसिएशन के मुताबिक सरकार को इस मामले में जल्द अपना रूख स्पष्ट करना चाहिए ताकि खतरनाक प्लास्टिक को फैलने से रोका जा सके।
पांच लाख का दो टन माल रोज सप्लाई
पॉलीथिन पर प्रदेश में 1 मई 2017 से प्रतिबंध लगने के बाद सफेद थैलों का चलन तेजी से बढ़ा। पतली पॉलीथिन आज भी चाय-समोसे, सब्जी, चाइनीज के ठेलों पर उपयोग में आती है, लेकिन गारमेंट, ज्वेलरी, मेडिकल, मोबाइल शॉप मालिक अब सफेद थेलों का इस्तेमाल कर रहे हैं। 250 रुपए किलो बिकने वाले पॉली प्रॉपलीन बैग्स भोपाल में प्रतिदिन दो टन सप्लाई हो रहे हैं जिसकी कीमत पांच लाख रुपए है। मांग में प्रतिदिन इजाफा हो रहा है।
पॉली प्रॉपलीन से ये नुकसान आबादी- पॉली प्रॉपलीन पॉलीथिन जलने पर डायऑक्सेन गैस छोड़ती है। इसके लगातार संपर्क में आने से व्यक्ति को फेफड़ों का कैंसर होने की संभावना काफी बढ़ जाती है।
पर्यावरण- पॉलीथिन कचरे में फैंकने और जलाने के बावजूद नष्ट नहीं होती है। इसमें मौजूद जहरीले रसायनिक तत्व मिट्टी की उर्वरक क्षमता को नष्ट कर देते हैं जिससे हरियाली हमेशा के लिए खत्म हो जाती है।
जानवर- खुले में फेंके जाने वाले प्लास्टिक को खाने से जानवर इसे पचा नहीं पाते हैं। ये आंतों में फंसकर पशु को गंभीर रूप से बीमार कर देता है और दुधारू पशु हमेशा के लिए दूध देने में असक्षम बन सकते हैं।
मुझे इस मामले में ज्यादा जानकारी नहीं है। यदि ऐसा है तो अधिकारियों से मामले की जांच करवाने कहूंगा।
आलोक शर्मा, महापौर
बाजार में चल रहे सफेद थैले पॉली प्रॉपलीन के दानों से तैयार होते हैं। ये प्लास्टिक मटेरियल ही है और 100 साल तक डिकंपोज नहीं होता है।
प्रवीण पाटनी, अध्यक्ष, मप्र प्लास्टिक एसोसिएशन