इसी आधार पर खदान में उत्खनन भी किया जाता है। यहां स्थिति उलट ही चल रही है। मुनारों का पता नहीं है, गहराई में किसने कितनी खदान खोद डाली है। इसकी जांच भी कोई अधिकारी नहीं करते।
जिले में मुरम और पत्थरों की १८० खदानें हैं, जो रातीबड़, नीलबड़, फंदा, रतुआ रतनपुर, बैरसिया, तूमड़ा सहित अन्य क्षेत्रों में संचालित हो रही हैं। पहली बात तो ये है कि एक बार खदान अलॉट होने के बाद खनिज विभाग का अमला इन खदानों में झांकने तक नहीं जाता। ऊपर से ज्यादा दबाव पड़ता है तभी अमला खदानों पर जांच करने पहुंचता है। कुछ दिन पहले हुई जांच में कई जगहों की खदानों को खनिज विभाग के इंस्पेक्टरों द्वारा जांच गया तो पता चला कि ३० प्रतिशत खदानों में मुनारें ही नहीं हैं। ये लोग तय मापदंडों से ज्यादा अवैध उत्खनन कर रहे हैं। तूमड़ा में तीन खदानों की गहराई भी काफी मिली हैं। विभाग रिपोर्ट तैयार कर रहा है।
२० से ३० साल में लुट जाएगी सम्पदा
खदानों के मामले में इसी प्रकार मनमानी चलती रही तो २० से ३० साल में ये खदानें काफी गहराई तक खोद दी जाएंगी। उस समय क्या स्थिति बनेगी, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। खनिज विभाग के पास गहराई तक खोदी गई खदानों को पाटने की भी कोई व्यवस्था नहीं रहती। सिर्फ राजस्व की कमाई में आने वाले तीन दशकों में हर दो किलोमीटर पर एक बड़ा गड्ढा नजर आएगा।
ध्यान रहता है डंपरों पर
खनिज विभाग राजस्व बढ़ाने के लिए अपना पूरा ध्यान मुरम और गिट्टी के डंपरों पर लगाए रखता है। खनिज इंस्पेक्टर रोजाना इन पर कार्रवाई कर रहे हैं। हफ्ते में तीन चार गिट्टी के डंपर पकड़े जाना आम बात है, लेकिन खदानों में क्या हो रहा है इस पर संज्ञान नहीं लेते।
खदानों पर मुनारों को लेकर खनिज इंस्पेक्टर ने जांच की है। कहीं-कहीं मुनारें नहीं मिली हैं, इसकी रिपोर्ट बनवा रहे हैं। हम लोग इस तरह की जांच करते रहते हैं। -राजेंद्र सिंह परमार, जिला खनिज अधिकारी