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भोपाल

डॉक्टर, इंजीनियर व वकीलों को आयकर में राहत, नौकरीपेशा भर रहे तिगुना टैक्स

– आयकर नियमों में बदलाव न होने के कारण विसंगति

भोपालJul 01, 2019 / 09:17 am

Rajendra Gaharwar

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भोपाल। एक समान आय कमाने वालों से आयकर विभाग ( income tax ) अलग-अलग टैक्स वसूल रहा है। डॉक्टर, इंजीनियर, वकील आदि सहित अन्य कंसलटेंट्स अपनी आमदनी की आधी रकम का खर्च दिखाकर आयकर से छूट पा जाते हैं। लेकिन, नौकरीपेशा लोगों को कंसलटेंट्स की तुलना में तिगुना टैक्स देना पड़ता है। आम बजट से पहले पत्रिका के आयकर नियमों को लेकर आयकर विशेषज्ञों और विभिन्न चार्टड अकांउटेंटस से बात करने पर ये विसंगति सामने उभर कर आई।

ऐसा आयकर नियमों में सालों से बदलाव नहीं होने के कारण हो रहा है। बजट से पहले वेतनभोगी लोग स्टैंडर्ड डिडक्शन की बड़ी छूट की उम्मीद लगाए हुए हैं। दरअसल नौकरीपेशा के लिए टै्रवल और मेडिकल रिइंबर्समेंट जैसे महत्वपूर्ण छूट वाले अलाउंसेस की सीमा में लंबे समय से बढ़ोत्तरी नहीं हुई है।

वेतनभोगी लोग आयकर नियमों की वजह से इसलिए भी ***** जाते हैं क्योंकि उनके वेतन से टीडीएस पहले ही खाते से काट लिया जाता है। नियोक्ता यह राशि टैक्स के रूप में जमा करा देते हैं। इससे उनके हाथ लगने वाला वेतन काफी कम हो जाता है। जबकि, कारोबारी और कंसलटेंट्स हर महीने विभिन्न मदों में खर्च दिखाकर छूट हासिल कर लेते हैं। 2018 में सरकार ने स्टैंडर्ड डिडक्शन की वापसी की थी। पर यह प्रतीकात्मक ही बनकर रह गई।

बच्चों की फीस में महज 100 रुपए की छूट

आयकर नियमों में लंबे समय से बदलाव नहीं होने के कारण नौकरीपेशा लोगों को मिलने वाली छूट व्यवहारिक नहीं रह गई है। मसलन दो बच्चों वाले अभिभावकों को स्कूल फीस में महज 100 रुपए महीने की छूट मिलती है। ऐसा ही हॉस्टल के लिए अधिकतम छूट सीमा 300 रुपए प्रतिमाह है।

घर की हिम्मत नहीं जुटा वेतनभोगी

चार्टड एकांउटेंट मनोज जैन की माने तो नौकरीपेशा के लिए घर बनाने की हिम्मत जुटा पाना भी कठिन है। इसकी वजह है प्रापर्टी के ब्याज में मिलने वाली छूट ऊंट के मुह में जीरा जैसी है। अभी आयकर में दो लाख रुपए तक की प्रापर्टी पर ब्याज की छूट मिल रही है। जबकि इस कीमत में प्लाट तक नहीं मिल रहे हैं। जैन कहते हैं कि स्टैंडर्ड डिडक्शन पॉलिसी और प्रापर्टी में छूट बढ़ाकर नौकरीपेशा लोगों को संबल दिया जा सकता है।

ऐसे समझें टैक्स के अंतर का गणित

सलाहकारों (इंजीनियर, डॉक्टर, वकील आदि) की अगर कुल सालाना आय 50 लाख रुपये से अधिक नहीं होती है तो वे प्रिजंप्टिव टैक्सेशन का चयन कर सकते हैं और पूरी आमदनी के 50 प्रतिशत (या ज्यादा) पर ही टैक्स चुका सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो कुल आमदनी के आधे हिस्से को खर्चा बताकर उस पर टैक्स छूट पाई जा सकती है। अगर नौकरीपेशा व्यक्ति और कंसल्टैंट की सालाना आमदनी 30-30 लाख रुपये है, तो मौजूदा व्यवस्था में वेतनभोगी को 6.73 लाख रुपये जबकि कंसल्टंट को महज 2.18 लाख रुपये टैक्स देना होगा। यह रकम सैलरीड एंप्लॉयी के टैक्स की रकम का एक तिहाई है। इसलिए, एक समान आमदनी के बावजूद वेतनभोगी, कंसल्टैंट के मुकाबले 4.55 लाख रुपये ज्यादा टैक्स चुकाएगा।
नौकरीपेशा को बजट से यह आस

– 2004-05 की तरह स्टैंडर्ड डिडक्शन में की 50 हजार की छूट का फायदा बड़ी सेलरी वालों को नहीं मिल रहा है। इसका दायरा बढ़ाकर अलग-अलग स्लेब तय किए जाने चाहिए।
– खर्च की सीमा में टै्रवल, मेडिकल में रिइंवर्समेंट पॉलिसी।
– सरकार पेंशन व्यवस्था को बंद कर नेशनल पेंशन स्कीम लेकर आई है, इसमें रिटायरमेंट के बाद बहुत ही कम पेंशन मिलेगी। सरकार पेंशन के अन्य स्रोत भी उपलब्ध कराए।
– सिटी कंपेनसिटरी व टिफिन अलाउंस में छूट मिले।
– महंगाई अत्यधिक बढ़ गई है, लेकिन हाउस रेंट की दरें बहुत पुरानी होने से आम वेतनभोगी को राहत नहीं मिल रही है। इसे रिवाइज किया जाए।
– चिल्ड्रन एजूकेशन और हॉस्टल अलाउंस की लिमिट अत्यधिक कम है, इसे बढ़ाकर महंगी शिक्षा से राहत दी जा सकती है।

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