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आखिर क्यों सुषमा ने किया चुनाव लड़ने से इंकार, राजनीतिक मजबूरी या फिर रणनीति ?

आखिर क्यों सुषमा ने किया चुनाव लड़ने से इंकार, राजनीतिक मजबूरी या फिर रणनीति ?

भोपालNov 21, 2018 / 02:33 pm

shailendra tiwari

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आखिर क्यों सुषमा ने किया चुनाव लड़ने से इंकार, राजनीतिक मजबूरी या फिर रणनीति ?

पवन तिवारी की रिपोर्ट

भोपाल. विदिशा सांसद और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने खराब स्वास्थ का हावला देते हुए अगामी लोकसभा चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है। हालांकि सुषमा स्वराज ने यह भी कहा है कि मैंने अपनी मंशा पार्टी को बता दी है और मेरी उम्मीदवारी पार्टी को तय करनी है। उन्होंने यह भी साफ कर दिया है कि वह राजनीति से संन्यास नहीं ले रही हैं। सुषमा के इस एलान के बाद अब लोकसभा में उनके जोरदार, विनम्र और तार्किक भाषणों को सुनने का मौका नहीं मिलेगा। सुषमा के चुनाव नहीं लड़ने का एलान करने के बाद से सियासी गलियों में हलचलें तेज हो गई हैं। सियासत की दुनिया में तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं कि आखिर सुषमा स्वराज ने अपने चुनावी राजनीति से संन्यास की घोषणा क्यों कर दी? क्या वाकई उनकी तबियत अब ऐसी नहीं है कि चुनावी मैदान पर आ सकें या फिर और कोई कारण है।

2016 में हुआ है किडनी ट्रांसप्लांट: विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का 2016 में किडनी ट्रांसप्लांट हुआ है। अपने बीमारी की जानकारी उन्होंने ट्विटर पर शेयर करते हुए लिखा था। ‘मेरे गुर्दे ने काम करना बंद कर दिया है, इसलिए मैं एम्स में भर्ती हूं। इस समय मेरी डायलिसिस चल रही है। गुर्दे के प्रतिरोपण के लिए मेरी स्वास्थ्य जांच की जा रही है। भगवान कृष्ण की कृपा मुझपर बनी रहे।’ सुषमा ने इंदौर में अपनी घोषणा के वक्त ये भी कहा कि डॉक्टरों ने मुझे धूल से दूर रहने की सलाह दी है। ऐसे में माना जा सकता है कि सुषमा स्वराज खराब सेहत के कारण चुनावी मैदान में नहीं उतरना चाहती हैं।
क्या कोई राजनीतिक कारण भी हो सकता है: सुषमा स्वराज के चुनावी संन्यास की घोषणा के पीछे राजनीतिक कारण भी हो सकता है। माना जा रहा है कि सुषमा जैसी दूरदर्शी नेता ने अपनी पार्टी में अगला आडवाणी और जोशी बनने से पहले ही चुनावी राजनीति से संन्यास की घोषणा कर पार्टी को यह संदेश देना चाहती हैं कि उन्हें व्यक्तिगत तौर पर किसी पद की इच्छा नहीं पर पार्टी द्वारा दी गई जिम्मेदारी का निर्वाहन करने को तैयार हैं। लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की पार्टी में उपेक्षा को देखते हुए ही उन्होंने ये निर्णय लिया है। सुषमा स्वराज के इलस निर्णय के बाद भाजपा पर दबाव बढ़ेगा क्योंकि सुषमा जैसी नेता को केन्द्र में फिर से सरकार बनने पर नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है।
सुरक्षित सीट का अभाव: सुषमा स्वराज मध्यप्रदेश के विदिशा लोकसभा सीट से लगातार दूसरी बार सांसद हैं। सुषमा स्वराज 2014 में जब दूसरी बार सांसद निर्वाचित हुईं थी तो उन्होंने कहा था कि वो अपने संसदीय क्षेत्र का लगातार दौरा करेंगी। लेकिन सुषमा अपने क्षेत्र से नदारद रहीं जिसके कारण लोगों में सुषमा को लेकर नाराजगी है। सुषमा स्वराज ने अपने राजनीति की शुरुआत 70 के दशक में हरियाणा से की थी। उसके बाद सुषमा देश के अलग-अलग राज्यों से चुनाव लड़ी पर उनकी कोई परंपरागत सीट नहीं बन पाई। दिल्ली से सांसद निर्वाचित हुईं और दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री भी बनीं। वहीं, कर्नाटक के बेल्लारी से भी चुनाव लड़ा था अभिवाजित यूपी से राज्यसभा के लिए चुनी गईं। 2009 औऱ 2014 का लोकसभा चुनाव उन्होंने विदिशा से लड़ा। ऐसे में सुषमा के पास परंपारगत सीट का अभाव है जिस कारण सुषमा चुनाव नहीं लड़ने से इंकार किया। हालांकि सुषमा ने विदिशा नहीं जाने का कारण बताया था कि डॉक्टरों ने उन्हें धूल से दूर रहने की सलाह दी है और मेरा लोकसभा ज्यादातर ग्रामीण इलाका है पर दिल्ली में बैठकर मैंने संसदीय क्षेत्र के सारे काम किए हैं। लेकिन सुषमा के खिलाफ विदिशा में कई बार लापता के पोस्टर लग चुके हैं और जनता की नाराजगी है ऐसे में कहीं ना कहीं उनके पास सुरक्षित सीट का अभाव है।

हो सकती है भाजपा की रणनीति ? : जानकारों का मानना है कि सुषमा स्वराज के चुनाव लड़ने के इंकार करने की एक वजह भाजपा की रणनीति भी हो सकती है। ऐसी चर्चाएं हैं कि सुषमा स्वराज को भाजपा एक बार फिर से राज्यसभा भेजकर उच्च सदन में अपने अप को मजबूत करेगी क्योंकि सुषमा के तर्किक भाषणों के सामने विपक्ष के पास भी जवाब नहीं होता है। विपक्ष भी सीधे तौर पर सुषमा पर हमला नहीं कर पाता है ऐसे में भाजपा राज्यसभा में पार्टी को मजबूत करने के लिए सुषमा को उच्च सदन भेज सकता है। जानकारों का यह भी कहना है कि लंबे समय से शिवराज सिंह चौहान को केन्द्रीय राजनीति में लाने की चर्चा हो रही है हालांकि इसको लेकर कभी भी पार्टी ने कोई भी आधिकारिक बयान नहीं दिया है। ऐसे में माना जा रहा है कि भाजपा लोकसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान को विदिशा संसदीय सीट से चुनाव मैदान में उतार सकती है औऱ उन्हें केन्द्रीय नेतृत्व में शामिल कर सकती है।

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