गोष्ठी की शुरुआत अनिल अग्रवाल ने अपनी रचना से की। उन्होंने ‘आई बारिश की जब बूंदे निकल पड़ी बच्चों की टोली पढ़ी तो श्रोतागण सुहाने मौसम के बीच खो से गए। इसके बाद वर्षा ऋतु पर आशा श्रीवास्तव ने सस्वर गीत पेश किया। जिसके ‘झमाझम बारिश हो रही पावस की ऋतु आई… थे।
इस गीत को सुनकर श्रोतागण खुद को ताली बजाने से नहीं रोपाए। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए सरिता बघेला ने ‘देखो मौसम हुआ मतवाला शीर्षक से कविता पढ़ी। इसके बाद साधना श्रीवास्तव ने सस्वर ‘रिमझिम बूंदे लेकर आई बरखारानी कविता पेश की। वहीं, श्यामा गुप्ता ‘दर्शना ने बालगीत ‘चलो चले हम बाहर खेले पेश किया तो अनिता श्रीवास्तव ने ‘मानसून तुम दूल्हा बनकर सृष्टि को आए ब्याहने पढ़कर वाह वाही लूटी।
कार्यक्रम की अगली कड़ी में लवकुमार शर्मा ने रचना पाठ किया, उन्होंने ‘दादा एवं पोती के रिश्तों से संबंधित एक रोचक कविता सुनाई, जो ‘दादू से कह दूंगा, मुझको झूठा बोला तो ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके बाद सीमा शिवहरे ने विलुप्त होते पक्षी गौरेया, मनोरमा चोपड़ा ने ‘बच्चा पूछे मां से, सुनाई तो राजकुमारी चौकसे ने ‘नन्हीं पोती संग खेलूं मैं, बच्चा बन जाती…. रचना की प्रस्तुति दी।
अरविन्द शर्मा ने बेटी का महत्व की कविता पेश की। वहीं, नवोदित कवि खुशी सक्सेना ने भोपाल का दर्शन कराती…, शिवम लोटस ने वर्षा गीत, सोनाली चतुर्वेदी ने ‘देश की खातिर मिटी, आन से नारी के साथ हर्षित तिवारी तथा नन्हीं अभिज्ञा चौकसे ने रचना पाठ किया।