बताया जा रहा है कि साल 2000 में जब कैलाश विजयवर्गीय इंदौर के महापौर बने थे तब उन्हें एक महात्मा ने बताया था कि इस शहर में पितृ दोष है, जिसके कारण इंदौर का समुचित विकास नहीं हो पा रहा है। महात्मा ने बताया था कि इसके निवारण के लिए पितृ पर्वत पर भगवान हनुमान की प्रतिमा स्थापित कराने से ये दोष दूर हो जाएगा। तब कैलाश विजयवर्गीय ने प्रतिज्ञा ली थी की जब तक वो पितृ पर्वत पर हनुमान की सबसे बड़ी प्रतिमा स्थापित नहीं कर लेते तब तक अन्न ग्रहण नहीं करेंगे।
कैलाश विजयवर्गीय ने अपने महापौर के कार्यकाल में ही हनुमान की प्रतिमा के प्राण-प्रतिष्ठा का संकल्प शुरू कर दिया था। इंदौर के पुरानी देवधरम टेकरी पर पितृ पर्वत पर इसकी शुरुआत की गई थी। इस जगह लोगों से पेड़ लगाने का आग्रह किया गया था। धीरे-धीरे इंदौर के लोग यहां अपने पूर्वजों की याद में पौधे लगवाना शुरू करा दिया। पिछले बीस साल में यहां करीब एक लाख पेड़ लगाए गए। हनुमान की अष्टधातु की प्रतिमा बनने का काम भी शुरू हुआ और ग्वालियर के 125 कारीगरों ने 7 साल में इस प्रतिमा को तैयार किया। फरवरी 2020 में प्रतिमा स्थापित की गई।
हनुमान जी के प्रतिमा की खास बात ये है कि ये प्रतिमा 72 फीट ऊंची और 108 टन वजनी है। बताया जा रहा है कि इस प्रतिमा के निर्माण में करीब 15 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं।
शुक्रवार को वृंदावन के संत महामंडलेश्वर गुरुशरणानंद महाराज व मुरारी बापू हनुमानजी की आराधना कर श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देंगे। इस बीच में गुरुशरणानंद महाराज के हाथों भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विजयवर्गीय अन्न ग्रहण करेंगे। वे करीब दो दशक से अन्न का त्याग कर चुके थे। कैलाश विजयवर्गीय 20 साल से गेहं, चावल, मक्का, बाजरा, ज्वार सहित दालों को छोड़ चुके थे। वे मोरधन, राजगिरा, साबूदाना और फल खाते थे। विजयवर्गीय के अन्न त्यागने के बाद उनकी पत्नी आशा विजयवर्गीय ने मोरधन के 20 प्रकार के व्यंजन बनाना सीख लिया। बाद में परिवार की अन्य महिलाएं भी इस प्रकार के व्यंजन बनाना सीख गईं। जब कैलाश विजयवर्गीय इंदौर से बाहर रहते हैं तब वो केवल सब्जी व फल का ही भोजन करते हैं।