सरकार ने इस दिशा में काम शुरू कर दिया है। भाजपा सरकार के समय कांग्रेस भ्रष्टाचार का आरोप लगाती रही है। ये आरोप भी लगते रहे हैं कि सरकार में बिना लिए-दिए काम नहीं होता। अब स्थितियां बदल गई हैं। भाजपा अब सत्ता से बाहर और कांगे्रस सत्ता पर काबिज है।
कांग्रेस जानती है कि अब उनकी सरकार भाजपा के निशाने पर हो सकती है। यही कारण है कि कांग्रेस सरकार ऐसा कोई मौका नहीं छोडऩा चाहती, जिससे कोई उन पर आरोप लगा सके। इसलिए मंत्रियों से कहा जाएगा कि वे अपनी संपत्ति सार्वजनिक करें। इसकी प्रक्रिया और समय अभी तय होना है।
2010 में भी तत्कालीन शिवराज सरकार ने किया था लागू
शिवराज सरकार में भी हुए थे प्रयास
वर्ष 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ऐलान किया था कि वे स्वयं और उनकी सरकार के मंत्री अपनी संपत्ति का ब्योरा विधानसभा के पटल पर रखेंगे। वर्ष 2011, 2012 और 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सहित सारे मंत्रियों ने सम्पत्ति का ब्योरा सदन में रखा भी।
वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में फिर से भाजपा की सरकार आई। शिवराज फिर मुख्यमंत्री बने, लेकिन तब वे अपनी ही घोषणा भूल गए। वर्ष 2015 में जयंत मलैया और 2017 में गौरीशंकर बिसेन ने संपत्ति का ब्योरा पेश किया। यानी इन दो मंत्रियों को छोडकऱ किसी ने भी अपनी संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक नहीं किया।
सार्वजनिक क्षेत्र में हैं तो संपत्ति का ब्योरा पेश करना ही चाहिए। मंत्रियों के साथ विधायकों के लिए भी इसे अनिवार्य किया जाएगा। वचन पत्र में भी इसका उल्लेख है। वचन पत्र में शामिल एक-एक बिन्दु का पालन होगा।
-डॉ. गोविंद सिंह, सामान्य प्रशासन मंत्री
राज्य के अधिकारी-कर्मचारियों की बात करें तो इन्हें प्रतिवर्ष अपनी संपत्ति का ब्योरा सरकार को देना होता है। अब प्रथम नियुक्ति पर उन्हें अपनी और परिवार की चल-अचल सम्पत्ति और आय के स्त्रोत की जानकारी देनी होगी।
यदि उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं या फिर उनके पास आय से अधिक सम्पत्ति पाई जाती है तो इसी प्रोपर्टी के आधार पर इसका आंकलन होगा। अर्जित की गई सम्पत्ति राजसात होगी।मुलाजिमों से भी
पूछी जाएगी संपत्ति