‘काठी’ एक मातृ पूजा का त्योहार
अगली प्रस्तुति हरदा के लक्ष्मीनारायण और साथियों ने निमाड़ अंचल के प्रसिद्घ लोकनृत्य काठी की हुई। माता पार्वती की तपस्या से संबंधित ‘काठी’ एक मातृ पूजा का त्योहार है। इसमें नर्तकों का श्रृंगार अनूठा होता है। गले से लेकर पैरों तक पहना जाने वाला बाना जो लाल चोले का घेरेदार बना होता है। काठी नर्तक कमर में एक खास वाद्य यंत्र ढांक्य बांधते हैं जिसे मासिंग के डण्डे से बजाया जाता है। काठी का प्रारम्भ देव प्रबोधिनी एकादशी से होता है और विश्राम महाशिवरात्रि को किया जाता है।
सिंधु नदी पर पेश किया नृत्य
संस्कृति विभाग की एकाग्र शृंखला गमक में सिंधी साहित्य अकादमी की ओर से सिंधी नृत्य और गीतों की प्रस्तुति दी गई। प्रस्तुति की शुरुआत नृत्य से हुई। जिसमें ओम अनिका सांस्कृतिक संस्थान की कलाकार ने गणपति वंदन-गण गणपतये नम:…, सिंधु नदी पर आधारित नृत्य प्रस्तुति दी। अगली कड़ी में आयोलाल झूलेलाल…, लद्दाख जी वादयुनि में…, ही मुहिंजो वतन ही तुहिंजो वतन… गीत पेश किए।