अध्यक्षता कर रहे कवि राजेश जोशी ने कहा कि 1990 के दशक तक की कविताओं में सभी वर्गों की आवाज रहती थी, किन्तु उसके बाद की कविताओं में दलित, आदिवासी और स्त्री विमर्श जैसे विषय भी शामिल हो गए और नये शब्द आने से हिन्दी भाषा का विस्तार हुआ है। आज देखें तो बहुत सारे विमर्श उठ खड़े हुए हैं। आज सभी कवियों ने अपनी-अपनी कविताओं में उस भूमि से जुड़ी कतिवाएं सुनाईं, जिसे किस तरह से जन-जंगलों से अलग किया जा रहा है। कविताओं को कागज पर उकेरने के बाद किस-किस तरह से भाषा बोलती है यह कागज की सार्थकता है। आज इस अनुनाद के माध्यम से सभी की कविताओं ने विस्तार दिया और इन सभी की भाषा ने भी हमें समृद्ध किया है।