top leaders of Congress कमलनाथ: छिंदवाड़ा से बाहर निकलना मुश्किल
विधानसभा चुनाव में कमलनाथ ने पूरे प्रदेश में प्रचार किया। उन्होंने 6 माह प्रदेश में कांग्रेस के चरमराए संगठन को खड़ा करने में लगा दिए। अब वे खुद छिंदवाड़ा से विधानसभा उपचुनाव लड़ रहे हैं, वहीं छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से उनके बेटे नकुलनाथ उम्मीदवार होने वाले हैं। ऐसे में कमलनाथ की जिम्मेदारी छिंदवाड़ा में बढ़ गई है।
कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया विधानसभा चुनाव में चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष थे। अब उन्हें यूपी का प्रभारी बनाया है। वे गुना सीट से उम्मीदवार बनने वाले हैं। वे खुद अपनी सीट पर ही उलझे नजर आ रहे हैं।
विंध्य में कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा अजय सिंह खुद की सीट को लेकर ही उलझन में हैं। अभी यही तय नहीं हो पाया है कि वे सतना से लड़ेंगे या सीधी से। उनका लोकसभा क्षेत्र बहुत चुनौतीपूर्ण है। विधानसभा चुनाव ने उनको चुरहट से ही हार का बड़ा झटका दे दिया है जिसको लेकर अब वे सतर्क हो गए हैं। उनके राजनीतिक भविष्य के लिए लोकसभा चुनाव में जीत अहम है ऐसे में प्रदेश पीछे छूट जाता है।
प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया स्वास्थ्य कारणों से प्रदेश को समय नहीं दे पा रहे। बावरिया के अलावा अरुण यादव को खंडवा से जीतना राजनीतिक रूप से जरुरी हो गया है, वहीं कांतिलाल भूरिया के लिए भी रतलाम-झाबुआ सीट पर फोकस जरूरी हो गया है।
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की प्रदेश के साथ देश में भी लोकप्रियता है। केंद्रीय संगठन ने उन्हें देश की जिम्मेदारी भी सौंप दी है। वे 3 दिन प्रदेश में प्रचार करेंगे तो दो दिन देश के अलग राज्यों में जा रहे हैं। ऐसे में प्रदेश के उम्मीदवारों को कम समय ही मिल पाएगा।
प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह की स्थिति जबलपुर में बेहद चुनौतीपूर्ण मानी जा रही है। उन्हें अभी खुद की सीट बचाने के लाले पड़ रहे हैं। वे अपना पूरा समय जबलपुर में जमावट करने में दे रहे हैं।
सांसद प्रहलाद पटेल लोधी समाज के बीच बड़ा चेहरा रहे हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान उन्हें लोधी वोट बैंक वाली कई सीटों पर प्रचार की जिम्मेदारी दी गई थी। अब लोकसभा चुनाव में बदले हालात में उनके लिए अपने क्षेत्र से बाहर निकलना मुश्किल होगा
केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र खटीक दलित और आदिवासी वर्ग के लिए प्रदेश में बड़ा नाम हैं। केंद्र में उन्हें अहम जिम्मेदारी दी गई है। पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार मुकाबला कठिन माना जा रहा है, इसलिए वे भी अपनी संसदीय सीट पर ही ध्यान केंद्रित कर आधार बनाए रखने की कोशिश करेंगे।
कांग्रेस अपनी सीट की चिंता
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के नेताओं ने मिलकर चौतरफा आक्रमण किए थे। केंद्र से राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने कमान संभाली थी। अब लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी भी प्रदेश को उतना समय नहीं दे पाएंगे। प्रदेश के बड़े नेताओं के अपनी ही सीट पर उलझने से कई सीटों पर प्रचार प्रसार फीका नजर जाएगा।
भाजपा कलह भी रहेगी हावी
चुनाव प्रचार के लिए भाजपा के कई अहम चेहरे भी अपने क्षेत्र से बाहर नजर नहीं आएंगे। चुनौतीपूर्ण महौल में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सहित प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह, नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, नंदकुमार सिंह चौहान अपनी सीटों पर फोकस करेंगे। अंदरूनी कलह भी असर डाल सकती है।