कांग्रेस ने अब तक 22 प्रत्याशी घोषित किए हैं। इनमें सात दिग्गज हैं, जो हारी बाजी जीतने की आस पैदा करते हैं। वहीं, भाजपा के 20 प्रत्याशियों में से सात वे हैं, जिनका राजनीति में पुराना सिक्का चल रहा है। दोनों सियासी दलों के लिए चुनौती बने इस चुनाव में दिग्गजों के सहारे मुश्किल को आसान करने का तरीका निकाला गया है।
ये है कांग्रेस दिग्गज
दिग्विजय सिंह : भोपाल प्रत्याशी दिग्विजय सिंह 10 साल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। उनको कार्यकर्ताओं के बीच कांग्रेस का सबसे लोकप्रिय नेता माना जाता है। कांग्रेस पिछले 30 सालों से भोपाल लोकसभा सीट पर जीत को तरस रही है। जीत का सूखा खत्म करने के लिए ही दिग्विजय को भोपाल से उतारा है।
विवेक तन्खा : जबलपुर प्रत्याशी विवेक तन्खा राज्यसभा से सदस्य हैं। उनका कार्यकाल दो साल से ज्यादा बाकी है, लेकिन कांग्रेस को यहां भी जीत की दरकार है। इस सीट पर कांग्रेस का वनवास खत्म करने के लिए पार्टी के पास तन्खा से बड़ा कोई विकल्प नहीं था।
अजय सिंह : अजय सिंह भले ही चुरहट से विधानसभा चुनाव हार गए हों, लेकिन विंध्य में कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा हैं। विंध्य की राजनीति पर मजबूत पकड़ के कारण ही कांग्रेस ने उनको सीधी से प्रत्याशी बनाया है।
ये हैं भाजपा के इक्के
प्रहलाद पटेल : दमोह से भाजपा ने एक बार फिर प्रहलाद पटेल को उतारा है। प्रहलाद पटेल भाजपा के बड़े लोधी नेता माने जाते हैं, उन्हें इस वर्ग में केंद्रीय मंत्री उमा भारती का विकल्प भी माना जाता है।
नरेंद्र सिंह तोमर : ग्वालियर सांसद और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर इस बार मुरैना से प्रत्याशी हैं। तोमर का लंबा चुनावी अनुभव है, वे प्रदेश में मंत्री भी रहे हैं और दो बार प्रदेश अध्यक्ष रहते सरकार भी बनाई है। तोमर राज्यसभा से भी सांसद रह चुके हैं।
वीरेंद्र खटीक : केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र खटीक को भाजपा ने टीकमगढ़ से जीत के भरोसे पर ही फिर से मौका दिया है। खटीक बुंदेलखंड के बड़े नेता माने जाते हैं। वे लगातार इस सीट से जीत रहे हैं।
गणेश सिंह : सतना से लगातार तीन बार के सांसद गणेश सिंह को चुनौती देना कांग्रेस के लिए आसान नहीं है। पिछले चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के अजय सिंह को शिकस्त दी थी। एक बार फिर पार्टी को उनसे जीत की उम्मीद है। दूसरी ओर कांग्रेस ने यहां राजाराम त्रिपाठी को चुनाव मैदान में उतारा है।
कांतिलाल भूरिया : रतलाम में भले ही 2014 में कांतिलाल भूरिया को झटका लगा हो, लेकिन उन्होंने उपचुनाव में जीत कर हिसाब बराबर कर दिया था। भूरिया कांग्रेस के सबसे बड़े आदिवासी नेता माने जाते हैं। भूरिया के अलावा कांग्रेस रतलाम सीट पर किसी और पर भरोसा नहीं कर सकती।
नकुलनाथ : नकुलनाथ छिंदवाड़ा से पहला चुनाव लड़ रहे हैं। दरअसल, ये सीट उनके पिता कमलनाथ की है जो अब मुख्यमंत्री बन चुके हैं। कमलनाथ इस सीट से नौ बार सांसद रहे हैं। ये सीट उनकी प्रतिष्ठा का सवाल है।
रामनिवास रावत : मुरैना प्रत्याशी रावत विजयपुर से पांच बार विधायक रहे हैं। हालांकि 2018 में हार मिली है। पार्टी को भाजपा के नरेंद्र सिंह तोमर को टक्कर देने में रावत ही सक्षम दिखे हैं।
अरुण यादव : पूर्व केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री अरुण यादव का गृह क्षेत्र खंडवा है। वे यहां से सांसद रह चुके हैं। उनके पिता सुभाष यादव का इस क्षेत्र में बड़ा नाम रहा है, भाई सचिन प्रदेश में कृषि मंत्री है।
फग्गन सिंह कुलस्ते : मंडला प्रत्याशी फग्गन सिंह कुलस्ते भाजपा का सबसे बड़ा आदिवासी चेहरा हैं। वे मंडला से लगातार जीतते रहे हैं। वे केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। कमजोर परफॉर्मेंस के बाद भी पार्टी को अपने इस पत्ते पर ही भरोसा है।
राकेश सिंह : प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राकेश सिंह तीन बार से जबलपुर से सांसद हैं। उनके वर्चस्व को तोडऩा कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
नंदकुमार सिंह चौहान : खंडवा प्रत्याशी नंदकुमार सिंह चौहान यहां से पांच बार सांसद रह चुके हैं। राकेश सिंह से पहले वे प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी रहे हैं।