2010 में मध्यप्रदेश की विधानसभा ने किराएदार और मकान मालिकों के मामलों को लेकर मध्यप्रदेश परिसर किराएदारी अधिनियम बनाया था। ये कानून आज तक लागू नहीं हो सका है। एक आंकड़े के मुताबिक प्रदेश की अदालतों में करीब चालीस हजार प्रकरण लंबित है। अगर सरकार का नया कानून लागू हो जाता, तो ट्रिब्यूनल में ये मामले जल्द निपट जाते।
किराएदारी विधेयक में यह हैं प्रावधान: 1. सरकार रेंट ट्रिब्यूनल का गठन करेगी, जिसमें किराएदारी से संबंधित मामलों की सुनवाई की जाए। 2. रेंट ट्रिब्यूनल में एक या एक से अधिक सदस्य होंगे, जो कि हाईकोर्ट के जज होंगे।
3. ट्रिब्यूनल के सदस्य मप्र न्यायिक सेवा का सदस्य होना चाहिए और कम से कम पांच वर्ष का अनुभव होना चाहिए। 4. हर जिले में कलेक्टर रेंट कंट्रोल अथॉरिटी का गठन करेंगे, जिसमेंं डिप्टी कलेक्टर स्तर के अधिकारी रहेंगे।
5. हर मामले को अधिकतम 6 माह में निपटाने का प्रावधान अधिनियम में है। 6. किराए पर मकान देने की सूचना रेट कंट्रोल अथॉरिटी को देना होगी। 7. मकान मालिक को मकान खाली कराने के लिए कारण बताना जरूरी नहीं होगा।
8. किराएदारी का एग्रीमेंट तो होगा, लेकिन उसको रजिस्टर्ड करना जरूरी नहीं होगा। 9. टूट-फूट होने पर किराएदार मकानमालिक से तत्काल काम करवा सकेगा। 10. किराएदार की मृत्यु होने पर मकानमालिक मकान खाली नहीं करवा सकेगा, किराएदारी का अधिकारी मृतक के उत्तराधिकारियों के पास चला जाएगा।
ट्रिब्यूनल का गठन करना चाहती है सरकार :
अभी तक किराएदार और मकानमालिक के बीच के विवादों को सविल कोर्ट में निपटाया जाता है। सरकार अलग से ट्रिब्यूनल और अथॉरिटी का गठन करना चाहती है। तात्कालिक आवास मंत्री जयंत मलैया ने 2010 विधानसभा में कानून को पेश किया था, लेकिन अफसरों ने अभी तक एक भी कदम नहीं उठाया है।
ऐसे बढ़ता गया इंतजार :
19 मार्च 2010 को मप्र सरकार ने किराएदारी विधेयक सदन में पारित किया और 26 मार्च 2010 को इसे गजट में प्रकाशित किया।
02 साल तक राष्ट्रपति भवन में अटकी रही फाइल। प्रदेश सरकार ने विधेयक पास कर मंजूरी के लिए भेजा था ।
12 अप्रैल 2012 को राष्ट्रपति भवन से मंजूरी मिली।
23 अप्रैल 2012 को फिर गजट प्रकाशन हुआ। लेकिन तब से न तो नियम बनें, ना ही ट्रिब्यूनल और रेट कंट्रोल अथॉरिटी का गठन हुआ।
अभी मध्यप्रदेश परिसर किराएदारी अधिनियम की फाइल उच्च अधिकारियों के पास गई है। उनके रिमार्क के बाद जब लौटेगी तभी आगे की कार्यवाही हो सकेगी।
– मलय श्रीवास्तव, प्रमुख सचिव आवास मध्यप्रदेश शासन दरअसल सरकार की मंशा ही नहीं है इस कानून को लागू करने की। सात साल पहले बना कानून अभी तक लागू नहीं हो पाया, अगर लागू होता तो कई लोगों को राहत मिल सकती है।
– जगदीश छावानी, अधिवक्ता भोपाल