मध्यप्रदेश का तर्क है कि वह गुजरात को उसके हिस्से का पानी दे चुका है। यदि बांध पूरा भर जाता है तो धार के 24 गांवों में रहने वाले 6 हजार परिवार डूब में आ जाएंगे। इनके विस्थापित होने के बाद ही गुजरात इस बांध को पूरा भर सकता है। मध्यप्रदेश के निर्णय से खफा होकर गुजरात सरकार ने नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण की शरण ली है।
बांध को पूरा भरने की अनुमति दी जाए
गुजरात सरकार ने न्यायाधिकरण से कहा है कि वे अपने बांध की सुरक्षा जांच करना चाहते हैं। इसलिए उसे पूरी क्षमता तक भरा जाना जरूरी है। ऐसे में इसे विशेष मामला मानते हुए बांध को पूरा भरने की अनुमति दी जाए। मध्यप्रदेश ने इसका विरोध करते हुए तर्क दिया है कि गुजरात को उसके हिस्से का 1600 क्यूसेक पानी दे चुके हैं। उसका यह भी कहना है कि बांध को 112 मीटर तक ही भरा जा सकता है, लेकिन गुजरात ने इसे 121 मीटर तक भर लिया है।
खास खास
मध्यप्रदेश ने कहा- पहले करो बिजली उत्पादन, तब देंगे पानी
मामला केन्द्रीय नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण पहुंचा
238 मीटर तक बांध भरने पानी मांग रहा गुजरात
112 मीटर तक ही भरने के लिए कह रहा मप्र
मप्र को 289 करोड़ रुपए की चपत
बांध को भरने गुजरात ने 1450 मेगावाट क्षमता के पन बिजली घर में एक साल से उत्पादन नहीं किया है। इसकी 57 फीसदी बिजली मध्यप्रदेश को मिलनी थी। गुजरात सरकार का कहना है कि वह मध्यप्रदेश को उसके हिस्से की बिजली के एवज में पैसा देना चाह रहा है, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं है। बिजली नहीं मिलने से मध्यप्रदेश को 289 करोड़ का नुकसान हुआ है। मुख्य सचिव एसआर मोहंती ने इस संबंध में गुजरात सरकार को पत्र भी लिखा है। मध्यप्रदेश ने साफ कहा है कि बिजली बनाकर बांध से पानी छोड़ा जाए, तभी अतिरिक्त पानी दिया जाएगा।
जल बंटवारे पर लंबे समय से विवाद
नर्मदा नदी अमरकंटक से निकलती है। इसकी लम्बाई 1300 किमी है। शुरुआत से ही गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में नर्मदा जल के बंटवारे को लेकर विवाद है। इसे सुलझाने के लिए केंद्र ने नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन किया।
पुनर्वास तक नहीं दे सकते और पानी
अब और पानी दिया तो मानसून में धार के 24 गांव डूब में आ जाएंगे। इनके पुनर्वास तक गुजरात को और पानी नहीं दे सकते।
एम गोपाल रेड्डी, अपर मुख्य सचिव नर्मदा घाटी विकास विभाग