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भोपाल

महाकाल मंदिर में खुदाई के दौरान निकली अनोखी चीज, महाकाल की शक्ति से ही सीधा संबंध

इससे पहले कि इस पत्थर के महत्व को और समझा जाता ये पत्थर टूट गया और साथ ही सदियों पुराना ऊर्जा का ये पुंज भी नष्ट हो गया।

भोपालFeb 05, 2018 / 05:01 pm

rishi upadhyay

mahakaal mandir

उज्जैन। दुनियाभर में महाकाल मंदिर के लिए प्रसिद्ध उज्जैन एक बार फिर से चर्चा में है। हाल ही में हुई खुदाई में यहां पर एक ऐसी चीज निकली है, जिसे देखकर हर कोई हैरान है। पहले तो देखने में ये सिर्फ एक साधारण पत्थर ही नजर आया, लेकिन पुरातत्वविदों और धर्मशास्त्रों से मिली जानकारी के बाद हर कोई इस चौकोर पत्थर को देखने के लिए उतावला नजर आया। लेकिन इससे पहले कि इस पत्थर के महत्व को और समझा जाता ये पत्थर टूट गया और साथ ही सदियों पुराना ऊर्जा का ये पुंज भी नष्ट हो गया। फिलहाल इसके अवशेष पुरातत्व सर्वेक्षण के पास अध्ययन के लिए भेज दिए गए हैं।

 

दरअसल कुछ दिनों पहले उज्जैन के विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर में सभा मंडप के जीर्णोद्धार के लिए खुदाई का काम चल रहा था। इसी दौरान एक पत्थरनुमा चीज दिखाई दी। मजदूरों ने इस पत्थर को निकालना शुरू किया। इससे पहले कि पत्थर पूरी तरह बाहर निकल पाता, उस पर बनी आकृति को देखकर वहां मौजूद पुजारी हैरान रह गए। ये कोई साधारण पत्थर नहीं था, बल्कि सदियों पुराना सूर्ययंत्र था।

 

इस सूर्ययंत्र को वहीं पर स्थापित किया गया था, जहां पर श्रावण मास में निकलने वाली सवारी से पहले महाकाल का पूजन किया जाता है। हालांकि ये सूर्ययंत्र बाहर निकलने के बाद ज्यादा देर तक सुरक्षित नहीं रहा और मजदूरों की लापरवाही से टूट गया। अब इस टूटे हुए सूर्ययंत्र को परीक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण कर रहा है।

 

इसलिए महत्वपूर्ण है सूर्ययंत्र
धर्मशास्त्रों के अनुसार सूर्य की ऊर्जा शिव में ही समाहित है। इसीलिए शिव मंदिरों में सूर् यंत्र ?र स्थापित किया जाता है। ताकि यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं पर इस ऊर्जा पुंज का प्रभाव पड़े और वे आध्यात्मिकता का अनुभव करें। माना जाता है कि संध्याकाल में किए जाने वाले पूजन में इस यंत्र का महत्व और बढ़ जाता है। धर्मशास्त्रियों के अनुसार अग्निपुराण में वर्णन है कि सूर्य की ऊर्जा से शिवलिंग की चेतना मानी जाती है। यही वजह है कि सूर्यास्त के बाद शिवलिंग पर जल नहीं चढ़ाया जाता है। चूंकि उज्जैन में महाकाल की सवारी मंदिर से संध्याकाल में ही निकाली जाती है। इसलिए प्राचीन विद्वानों ने पालकी में निकलने वाली चलायमान मूर्ति में ऊर्जा पुंज का प्रवाह बनाए रखे रहने के लिए, सवारी के पूजन स्थल पर ही सूर्ययंत्र की स्थापना की होगी।

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भस्मारती के लिए प्रसिद्ध है महाकाल मंदिर

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आपको बता दें कि विश्व भर में महाकाल मंदिर भस्मारती के लिए प्रसिद्ध है। ब्रह्ममुहूर्त में होने वाली ये आरती अपने आप में विशेष है, इसकी ख्याति और धार्मिक महत्व को देखते हुए श्रद्धालु कई घण्टों पहले से ही लाइन में लग जाते हैं। मंदिर में अगर भस्म आरती की बुकिंग करने के लिए आ रहे है तो श्रद्धालु अपने साथ आधार कार्ड, वोटर आइडी या फिर ड्राईविंग लाईसेंस की फोटो कॉपी लेकर आए। क्यों की समिति आपके आईडी के आधार पर ही आपको अनुमति देगा।

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महिलाएं इस बात का रखें ध्यान

भस्म आरती में दर्शन करने आ रही महिलाएं विशेष रूप से इस बात का ध्यान रखे की आपको भस्म आरती की अनुमति मिलने के बाद मंदिर में साड़ी में ही प्रवेश दिया जाएगा। अगर आप गर्भगृह में बाबा को हरिओम जल अर्पित करना चाहते है तो आपको साड़ी पहनकर आना अनिवार्य है। वहीं पुरूषों को धोती पहनना अनिवार्य होगा। धोती सिली हुई नहीं होना चाहिए।

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