भोपाल/ मध्यप्रदेश के माथे पर रेप कैपिटल का दाग लगा है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा रेप की घटनाएं होती हैं। वहीं, 2018 के लिए आए एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में सबसे ज्यादा सेक्सुअल अपराध की पीड़िताएं यहां खुदकुशी भी करती हैं। 2017 में रेप पीड़िताओं की खुदकुशी को लेकर एमपी पूरे देश में टॉप पर था तो 2018 में भी दूसरे स्थान पर है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2017 में मध्यप्रदेश उन राज्यों की सूची में सबसे ऊपर था, जहां रेप और यौन शोषण के पीड़िताओं द्वारा खुदकुशी करने की बात सामने आई थी। पूरे देश में रेप पीड़िताओं की खुदकुशी की बात करें तो पचास फीसदी मामले मध्यप्रदेश के ही थे। 2018 में भी खुदकुशी करने वाले पीड़िताओं की संख्या जरूर कम हुई लेकिन मध्यप्रदेश देश में दूसरे नंबर पर है।
मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा खुदकुशी एनसीआरबी द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार भारत में रेप और यौन शोषण की शिकार पीड़िताओं ने 2017 में 107 और 2018 में 192 ने खुदकुशी की। जबकि 2017 में मध्यप्रदेश में 49 पीड़िताओं ने खुदकुशी की जो कि देश में सबसे ज्यादा था। 2018 में 192 घटनाओं में से 27 मध्यप्रदेश में घटी। फिर भी मध्यप्रदेश देश में दूसरे पायदान पर रहा।
परीक्षाओं में फेल होने पर भी की खुदकुशी मध्यप्रदेश में 2017 और 2018 में कई लोगों ने परीक्षा में असफल होने पर भी खुदकुशी की। 2017 और 2018 में ऐसे मामलों को लेकर मध्यप्रदेश पूरे देश में तीसरे स्थान पर रहा। 2017 में परीक्षा में असफल होने पर 312 लोगों ने खुदकुशी की। जबकि 2018 में परीक्षा में असफल होने पर 248 लोगों ने खुदकुशी की।
लव अफेयर में भी लोग कर रहे आत्महत्या एनसीआरबी के आंकड़ें यह बयां कर रहे हैं कि मध्यप्रदेश में लव अफेयर में भी लोग खुदकुशी कर रहे हैं। 2017 में प्रेम-प्रसंग में करीब 449 लोगों ने अपनी जिंदगी खत्म कर ली। वहीं, 2018 में 403 खुदकुशी के पीछे की वजह प्रेम-प्रसंग ही था।
इन घटनाओं पर मनोचिकित्सक सत्यकांत त्रिवेदी ने कहा कि रेप पीड़िताओं के मानसिक स्वास्थ्य का मूल्यांकन अनिवार्य किया जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने स्कूल में मानसिक स्वास्थ्य को स्कूली सिलेबस में भी अनिवार्य किए जाने की मांग की है। यह कई समस्याओं का समाधान होगा। उन्होंने कहा कि परीक्षा में असफलताओं की वजह से आत्महत्या की घटनाएं बढ़ रही हैं। पहले भी परीक्षाएं होती थीं लेकिन खुदकुशी की घटनाएं कम थीं। तनाव से निपटने के कौशल अब बच्चों में कमजोर पड़ गए हैं। वे एक तनावपूर्ण जीवन शैली के अधीन हैं, जहां बाहरी गतिविधियां प्रतिबंधित हैं।
सत्यकांत त्रिवेदी ने कहा कि सोशल मीडिया की वजह से बच्चे जरूरतों के तत्काल संतुष्टि के आदि हो रहे हैं। यह उन्हें विफलता से निपटने से रोक रहा है। स्कूली पाठ्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य को जोड़ने से जागरूकता पैदा होगी और इन मुद्दों का समाधान भी होगा।
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