आपको बता दें कि राजधानी में वन क्षेत्र से सटे रहवासी क्षेत्रों में बाघों की मूवमेंट आम है। वन क्षेत्रों में हुए बेतरतीब निर्माण से भी परेशानी बढ़ी है। इससे अकसर रहवासी क्षेत्रों में वन्य जीवों की मौजूदगी रहती है।
छह साल से नहीं खरीदे कैमरे
जानकारी के मुताबिक वन विभाग ने राजधानी के आसपास बाघों का मूवमेंट बढऩे के बाद वर्ष २०१४ में ११ ट्रैप कैमरे खरीदे थे। इसके बाद केरवा-कलियासोत से लेकर रायसेन तक फैली समरधा रेंज में बाघों की संख्या लगातार बढ़ती गई और ये २० तक पहुंच गई, लेकिन ट्रैप कैमरों की संख्या नहीं बढ़ाई गई। जमीनी हकीकत ये है कि ११ कैमरों में से चार खराब हो गए हैं, दो कैमरों की फोटो साफ नहीं आती। ऐसे में वन विभाग के पास उपयोग लायक कैमरे महज पांच ही हैं।
कैमरा हुआ था चोरी
आपको बता दें कि पिछले दिनों सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में लगा ट्रैप कैमरा चोरी हुआथा। आशंका है कि ये हरकत शिकारियों ने की थी। इधर, राजधानी में आला अधिकारियों की मौजूदगी के बावजूद ट्रैप कैमरे को लेकर लापरवाही बरकरार है।
सर्विलांस सिस्टम ठीक से नहीं कर रहा काम
केरवा सेंटर में एक करोड़ की लागत से लगाया गया सर्विलांस सिस्टम भी ठीक तरीके से काम नहीं कर रहा है। पिछले दिनों ये सिस्टम बंद हो गया था। सुधार के बाद इसने काम शुरू किया, पर झिरी क्षेत्र में लगाया गया कैमरा अब भी बंद है। इससे इस क्षेत्र में वन्य जीवों की निगरानी नहीं हो पा रही है।