सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. पुष्पराज शर्मा कहते हैं, जनप्रतिनिधियों एवं प्रशासनिक उपेक्षा से शहरवासी पानी के लिए परेशान हैं। ये स्थिति तब है जब शहर में तीन नदियां और तीन तालाब हैं। तीनों नदियां गंदगी की भेंट चढ़ गईं और तालाब को कांक्रीट का लालच निगल गया। एक तालाब तो नेताओं ने पट्टों में बांट दिया। शहर में सड़क या लाइट की समस्या बोलो तो हल नहीं होती पर तालाब पर बनी कॉलोनी में प्लाट कटने से पहले सड़क और बिजली सेवा दे रहे हैं।
पीएचई के रिटायर्ड एसडीओ एसके राजौरिया के मुताबिक पानी नहीं है तो उद्योग कैसे पनपेंगे। साइकिल कारखाना बंद हो चुका। एक ऑयल मिल थी, वह भी बंद होने की कगार पर है। रोजगार कहां से मिलेगा। राघौगढ़ में एनएफल (नेशनल फर्टीलाइजर लिमिटेड्र) और गेल (गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड) आया तो मुट्ठी भर युवाओं को रोजगार मिला। हमारे युवा तो बड़े शहरों के भरोसे हैं। सरकार ने चैनपुरा में इंडस्ट्रीयल एरिया तो बनाया है पर वहां बुनियादी सुविधाएं ही नहीं हैं। ट्रेड यूनियन नेता नरेंद्र सिंह भदौरिया कहते हैं राजनीतिक स्वार्थ के लिए क्षेत्र से खिलवाड़ किया जाता रहा है।
पास की विधानसभा बमौरी में 50 फीसदी से अधिक आबादी आदिवासी वर्ग की है पर यह सामान्य सीट है, जबकि गुना सीट आरक्षित है। भदौरिया बताते हैं कि बमौरी क्षेत्र के हजारों लोग बंधुआ मजदूर बन दूसरे शहरों में काम कर रहे हैं। 451 को तो हमने मुक्त कराया है। राजस्थान के रामगंज मंडी में टाइल्स का काम मिल रहा है। रोजाना सैकड़ों मजदूर वहां रवाना हो रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता लोकेश शर्मा बताते हैं कि सरकार की एक छत एक शाला योजना की भेंट 411 स्कूल चढ़ रहे हैं। इन्हें बंद करने की तैयारी है। इससे गरीबों की मुसीबत और बढ़ जाएगी।
प्रद्युम्न जैन बताते हैं कि गुना कभी स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में अव्वल था। यहां जयपुर, कोटा समेत आसपास के शहरों से मरीज इलाज के लिए आते थे पर आज 400 बिस्तर की क्षमता वाले अस्पताल में डॉक्टरों की कमी ने ऐसा महौल बिगाड़ा कि यहां के मरीज भी निजी अस्पतालों एवं अन्य शहरों के भरोसे हैं। छह-सात निजी अस्पताल बन गए पर सरकारी के हाल नहीं सुधरे। हालात ये हैं कि गुना से अस्सी फीसदी लोग इलाज के लिए कोटा और जयपुर जा रहे हैं।
ब्रजेश दुबे कहते हैं कि शहर कभी हॉकी समेत अन्य खेलों का गढ़ हुआ करता था, पर अब यहां ऐसा कुछ नहीं है। स्टेडियम बदहाल है, कोई सुनवाई नहीं होती। इससे खेल प्रतिभाओं को नुकसान हो रहा है। जागरुक ग्रुप के अमित तिवारी कहते हैं, शहर में नशे का कारोबार प्रशासन की नाक के नीचे बदस्तूर जारी है, इसकी वजह से हर हफ्ते एक युवा की मौत होती है। प्रशासन को सब पता है कि कहां स्मैक बेची और खरीदी जाती है पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती। युवाओं की रगों में स्मैक का नशा दौड़ रहा है, जिससे अपराध भी बढ़े हैं। नशे के मुद्दे को आगे बढ़ाते हुए विनोद नायक कहते हैं कि प्रशासन की अनदेखी से यहां शराब दुकानें सुबह छह बजे खुल जाती हैं, बाजार भले ही आठ बजे बंद कर दिए जाते हैं, पर शराब दुकानें देर रात तक खुली रहती हैं। नेशनल हाइवे से सटे शहर के अंदर की सड़कें बदहाल ही हैं। यहां बिजली और भावांतर के जख्म दिखाई देते हैं।
मावन गांव के महावीर सिंह रघुवंशी कहते हैं, सरकार ने भावांतर योजना तो शुरू की, पर पैसा समय से नहीं मिल रहा है, बीज कहां से खरीदें। बिजली तो 10 घंटे दे रही है सरकार- पूछने पर बोले अभी चल के देखो। सरकार के मंत्री गांव आकर रुकें तब असलियत दिखेगी रवींद्रसिंह जाट कहते हैं एट्रोसिटी एक्ट ने सामाजिक तानाबाना बिगाड़ दिया है। इसका असर चुनावों में दिखेगा ही। रियासतें खत्म हो गईं फिर भी महल के प्रति इतना झुकाव क्यों। इस पर बाबूलाल रजक कहते हैं- मुसीबत में काम आने वाले को कौन याद नहीं रखता। रजक बताते हैं 65 साल पहले भयानक सूखा पड़ा था तब महाराज जीवाजी राव सिंधिया ने विदेश से लाल बाजरा और गेहूं मंगवाकर बंटवाया था। किसानों के कर्ज माफ किए थे। अब ऐसे अहसान तो लोग याद रखते हैं न।