दोनों ही दलों पर हाल ही में उठे सवर्ण आंदोलन का पूरा असर नजर आ रहा है। भाजपा ने २९ तो कांग्रेस ने ३० ब्राह्मणों को मैदान में उतारा है। वहीं क्षत्रीय वोटरों को लुभाने के लिए भाजपा ने ३३ और कांग्रेस ने ३२ ठाकुर मैदान में उतारे हैं। विंध्य और ग्वालियर चंबल में ब्राह्मण-ठाकुर फेक्टर साफ नजर आ रहा है।
वेश्य समाज को भाजपा ने ९ तो कांग्रेस ने एक ही टिकट थमाया है।
भाजपा की जातीय राजनीति
विंध्य में ८ ब्राह्मण और ६ क्षत्रीय उम्मीदवार उतार कर वहां इस समाज के वर्चस्व को वोट में बदलने की पूरी कोशिश की है।
ग्वालियर-चंबल में पांच-पांच ठाकुर-ब्राह्मण मैदान में उतारे हैं। पाटीदार समाज की नाराजगी को देखते हुए मालवा में पाटीदारों को जगह मिली है। भाजपा की सूची में ५ पाटीदार शामिल है। ग्वालियर-चंबल में लोधी, मीणा और कुशवाहा समाज को टिकट देकर साधने की कोशिश है। बुंदेखंड में खटीक, अहिरवार और लोधी समाज को वजन मिला है।
मालवा की एसटी सीटों पर यह ध्यान बखूबी रखा है कि भील और भिलाला दोनों आदिवासी जनजातियों को स्थान मिले, ताकि किसी की नाराजगी चुनाव में देखने को ना मिले। भाजपा ने सिर्फ एक मुस्लिम उम्मीदवा उतारा है। २०१३ में भी एक ही मुस्लिम उम्मीदवार उतारा गया था।
कांग्रेस उम्मीदवारों में ब्राम्हण,ठाकुर और पिछड़ा का दबदबा
कांग्रेस के उम्मीदवारों की सूची में जाति का प्रभाव साफ तौर पर नजर आता है। कांग्रेस ने सभी जातियों को साधने की कोशिश की है सूची में ब्रहामण,ठाकुर और पिछड़ा वर्ग का प्रभाव साफ तौर पर दिखाई देता है।
प्रदेश में ब्राहमण-ठाकुर समीकरण के चलते साठ से ज्यादा टिकट दिए गए हैं। ग्वालियर-चंबल, विंध्य, बुंदेलखंड और मध्य भारत में इन जातियों का प्रभाव देखते हुए ज्यादा टिकट दिए गए हैं। प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी की आबादी ५० फीसदी से ज्यादा है, इसलिए ओबीसी को ५८ टिकट दिए गए हैं, जिसमें यादव,लोधी और गुर्जरों का खास ध्यान रखा गया है।
अनुसूचित जाति और जनजाति के तो ८२ सीटें आरक्षित ही हैं। कांग्रेस की सूची में अल्पसंख्यकों को भी तरजीह देने की केाशिश की गई है। तीन मुस्लिम, तीन सिक्ख,छह जैन और एक सिंधी समाज से भी उम्मीदवार बनाया गया है।