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भोपाल

मुंबई और ठाणे में MP सरकार की बेशकीमती जमीन की डील के दस्तावेज गायब

मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था, इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई हाईकोर्ट से कहा है कि संभव हो तो इस केस को फिर खोला जाए।

भोपालJan 14, 2018 / 12:11 pm

दीपेश तिवारी

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भोपाल। मप्र सरकार की कई एकड़ बेशकीमती जमीन को मुंबई और ठाणे में निजी हाथों में देने के मामले में हर रोज कुछ नए तथ्य सामने आ रहे हैं। बताया जाता है कि मुंबई में गलत तरीके से वर्ष 2001 में नीलकंठ सोसायटी को जमीन देने के मामले के अलावा करीब 40 साल पहले हुई जमीन की एक डील से जुड़े दस्तावेज भी गायब हो गए है।

वित्त विभाग के अधिकारियों के मुताबिक मुंबई स्थित मप्र सरकार की कुछ जमीन 1970 के दशक में निजी हाथों में सौंपी गई थी। यह मामला भी कोर्ट में गया था। सूत्रों के मुताबिक अब जमीन के इस सौदे से जुड़े केस के दस्तावेज गायब हो गए हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था, इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई हाईकोर्ट से कहा है कि संभव हो तो इस केस को फिर खोला जाए।

कहा जाता है कि उस दौरान मप्र सरकार की कंपनी मप्र प्रोविडेंट इन्वेस्टमेंट कंपनी लिमिटेड और वित्त विभाग के अधिकारियों ने सरकार की जमीन निजी हाथों में सौंप दी थी। कंपनी के एमडी अनिरुद्ध मुखर्जी ने कहा कि 1970 के दशक में हुए सौदे से जुड़े कुछ दस्तावेज कोर्ट में थे, जो गायब हुए हैं। उस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को निर्देश दिए हैं।

दूर तक जा सकती है आंच…
वहीं, कई बड़े लोगों तक 2001 में नीलकंठ सोसायटी को दी गई जमीन और पीआईसीएल कंपनी में हुई अन्य गड़बड़ियों की जांच पहुंच सकती है। सूत्रों के अनुसार कंपनी के मैनेजर पद पर रहते हुए अतुल बोरीकर ने सरकार में बैठे कई लोगों को उपकृत किया है। सीबीआई ने कंपनी में हुई गड़बड़ी को लेकर मामला भी दर्ज कर लिया है। जल्द ही कई लोगों से पूछताछ भी हो सकती है।

इधर,कबाड़ी के यहां मिले जमीन के सरकारी दस्तावेज:-
वहीं एक अन्य मामले में पिछले दिनों इंदौर में जिस जमीन के भूखंडधारक प्रमाण-पत्र आदिवासी ग्रामीणों को अंत्योदय योजना के अंतर्गत बांटे जाने थे, वे सांवेर नदी के किनारे कबाड़ी के यहां मिले। गरीब आदिवासियों का कहना है कि वे पिछले चार साल से इन प्रमाण-पत्रों के मिलने का इंतजार कर रहे हैं। अधिकारियों की लापरवाही के कारण उन्हे क्षतिग्रस्त झोपड़ियों में रहना पड़ रहा है। यह बात जनसुनवाई के दौरान कलेक्टोरेट कार्यालय में महू तहसील के ग्राम पंचायत भगोरा के आदिवासियों ने कही।

ग्रामीण हुकमसिंह आंजना ने बताया कि 7 जनवरी 2013 को अंत्योदय मेले में 70 आदिवासियों को भूखंडधारक प्रमाण-पत्र बांटे जाने थे। मेला तो आयोजित हुआ लेकिन प्रमाण-पत्र नहीं बंटे, जबकि ये बनकर तैयार थे। आदिवासी प्रमाण-पत्र के माध्यम से मिलने वाली जमीन के हक का चार साल से इंतजार कर रहे हैं। कुछ दिन पहले ये प्रमाण-पत्र सांवेर में नदी किनारे कबाड़ खरीदने वाले राधेश्याम राठौर के यहां लिफाफे में बंद मिले।

जब ये लिफाफे कबाड़ी के बेटे वकील धर्मेंद्र राठौर ने देखे तो इसकी खबर आदिवासियों को दी। इस मुद्दे को लेकर मंगलवार को सभी हितग्राहियों ने अपनी फरियाद प्रभारी कलेक्टर रुचिका चौहान को सुनाई। प्रमाण-पत्रों को कबाड़ में फेंकने वाले जिम्मेदार अधिकारी व कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई की भी मांग की। प्रभारी कलेक्टर ने जांच का आश्वासन देते हुए इसकी शिकायत जिला पंचायत सीईओ से भी की है।

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