दिसंबर 2018 में मध्यप्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए। किसी भी पार्टी को पूर्व बहुमत नहीं मिला। कांग्रेस बहुमत से दो सीट दूर रही तो भाजपा 7 सीटों से। निर्दलीय, सपा और बसपा के सहारे मध्यप्रदेश में 15 साल बाद दिसंबर 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी। 15 महीने की सरकार में कई कांग्रेस विधायकों की नाराजगी सामने आई तो कभी गुटबाजी। मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने से कई सीनियर नेताओं ने अपनी ही सरकार पर हमला बोला। लेकिन मार्च 2020 में सरकार के 22 विधायकों द्वारा इस्तीफा भेजने के बाद मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार मुश्किल में है।
विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा ज्योतिरादित्य सिंधिया थे। सरकार बनी तो सीएम कमलनाथ को बनाया गया। दूसरी तरफ सिंधिया लोकसभा चुनाव भी हार गए। इस हार के बाद सिंधिया की लगातार मध्यप्रदेश में उपेक्षा होती रही। होली के दिन जब पूरा देश रंगों की दुनिया में रंगा था तभी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस के रंग में भंग टाल दिया और कांग्रेस को अलविदा कह दिया। सिंधिया के इस्तीफे के बाद उनके समर्थक मंत्री और विधायकों ने इस्तीफा दे दिया। 11 मार्च को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा ज्वाइन की और कांग्रेस का खेल बिगड़ गया।
मुख्यमंत्री कमलनाथ लगातार यह कह रहे हैं कि उनकी सरकार पूर्ण बहुमत में है। इसके बाद भी सरकार फ्लोर टेस्ट कराने से बच रही है। दूसरी तरफ भाजपा जल्द फ्लोर टेसट कराने की मांग कर रही है। विधायकों के इस्तीफे के बाद अगर सदन में फ्लोर टेस्ट होता है तो सरकार के लिए मुश्किलें हो सकती हैं। इन हालातों में अगर कमलनाथ बहुमत साबित करते हैं तो उनकी सरकार बची रहेगी और बहुमत साबित नहीं कर पाते हैं तो मध्यप्रदेश में नई सरकार देखने को मिल सकती है। ऐसे में मना जा रहा है कि क्या 15 महीने बाद मध्यप्रदेश में एक बार फिर से ‘कमल’ की सरकार बनने जा रही है।
क्या है विधानसभा की स्थिति
कुल विधानसभा सीटें- 230
खाली सीटें- 02 ( भाजपा-कांग्रेस विधायक के निधन के कारण ) 6 विधायकों का इस्तीफा मंजूर होने के बाद विधानसभा की स्थिति
कुल विधायक- 222
भाजपा- 107
कांग्रेस- 92 ( 6 विधायकों का इस्तीफा मंजूर हो चुका है, 16 विधायकों ने इस्तीफा भेज दिया पर अभी तक मंजूर नहीं )
अन्य- 07 (4 निर्दलीय, 2 बसपा, 1 सपा )
बहुमत के लिए जरूरी सीटें- 112